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जलती रहे मशाल
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१०३ व्यक्तित्व-विकास की इस नौवीं कक्षा में मनन करता है । समदर्शी बनकर व्यक्तित्व को निखारता है ।
बाहुबली का व्यक्तित्व पूर्णता कैसे पाता, मन में अहम् और कुंठा की ग्रन्थियाँ जो अटकी थीं । बाहुबली की बहिनें ब्राह्मी और सुन्दरी उनके पास जाती हैं । वे बोलीं, भाई! हाथी से नीते उतरो, अपने पैरों पर खड़े होओ ।
बाहुबली बहिनों की आवाज सुनकर चौंक गये । सोचा, अरे ! मैं और हाथी पर चढ़ा हुआ ? उनके व्यक्तित्व की नौका को गहरा धक्का लगा । उन्होंने स्वयं को अंहकार के मदमाते हाथी पर बैठा पाया । जैसे ही समदर्शिता उभरी, थोड़ी ही देर में उन्होंने स्वयं के व्यक्तित्व को सम्पूर्ण पाया ।
दसवें घर का जो लोग दरवाजा खटखटाते हैं, उसमें प्रवेश कर लेते हैं, संसार उस ओर उमड़ता है । इस गृह-स्वामी के दर्शनमात्र से लोगों को खुशी होती है ।
ग्यारहवीं सीढ़ी बहुत खतरनाक है । ऐसा समझिये, इस सीढ़ी पर केले के छिलके पड़े हैं । पैर रखा कि फिसला । यह काम करती हैदमित क्रोध, मान, माया, लोभ की चाण्डाल-चौकड़ी । यह दबी हुई माया हमारे मुँह परं थप्पड़ लगाती है । इसलिए व्यक्तित्व-विकास की पगडंडी पर चलने वाले व्यक्ति को ग्यारहवीं सीढ़ी पर पैर नहीं रखना चाहिये । इसे फाँदकर आगे बढ़ना है, पर फाँद भी वही सकता है, जिसने चांडाल-चौकड़ी को कभी पास नहीं फटकने दिया ।
बारहवें स्थान में उसी का आसन लग सकता है, जिसने स्वार्थ की रत्ती-रत्ती भस्मीभूत कर डाली । उसका व्यक्तित्व फिर खुद के लिए ही नहीं, अपितु दुनिया के लिए वरदायी बन जाता है । यहाँ व्यक्ति व्यक्ति ही नहीं रहता, वह महापुरुष बन जाता है । अन्तर्-व्यक्तित्व में छिपी ईश्वरीय शक्तियाँ जग जाती हैं । 'ता ते मानी खुदाय दर ख्वाबस्त, तो न मानी चु ओ शनद बेदार'- यदि व्यक्ति मैं-मैं करेगा, तब तक ईश्वर हममें सोया रहता है । जब मैं-मैं छूट जाएगी, तो भीतर का ईश्वर जाग जाएगा ।
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