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चलें, मन के-पार यानी व्यक्तित्व-विकास की, पूर्णता की देहरी पर कदम रख देगा । यह स्थान हमारे व्यक्तित्व की परिपक्व अवस्था है । यहाँ खतरा नहीं है, अन्तर-तृप्ति है । आनन्द का सागर हिलोरें लेने लगता है । संसार पर करुणा की अमी-धारा उससे बरसने लगती है ।
व्यक्तित्व के तेरहवें मंच पर पहुँचने वाले भाग्यशाली हैं । यह व्यक्तित्व की सर्वोच्चता है, जीवन-मुक्तता है । प्रकाश के आवरणों का छिन्न-भिन्न होना है । इससे ऊँचा व्यक्तित्व मानव द्वारा सम्भव नहीं है । वे जो कुछ भी कहते हैं, उनके व्यक्तित्व की वह विश्व पर कृपा है । उसकी बातें सच्ची होती हैं, सीधी होती हैं, पर पैनापन अपूर्व होता है । जैसे ही, जब भी वह व्यक्ति कहीं से गुजरेगा, तो सारा समा ही बदल जायेगा | उनके व्यक्तित्व के गुलाबी फूलों से सारा वातावरण सुरभित हो जाता है ।
चौदहवीं सीढ़ी मंजिल को छुई हुई है । यात्री की यात्रा पूरी हो जाती है, उसे गंतव्य मिल जाता है । उसका व्यक्तित्व सिद्ध बन जाता है । विश्व उसकी चरण-धूलि को पाकर स्वयं को कृतार्थ समझता है । समर्पित हो जाते हैं उनके चरणों पर अनगिनत श्रद्धा-पुरुष ।
इस तरह जो व्यक्ति जनमों-जनमों से विषपायी होता है, वही अमृतपायी बन जाता है । कुदरत उसके व्यक्तित्व के लक्षकोणों के हर एक कोने में सूरज साकार कर देती है । ऐसे व्यक्तित्व ही बनते हैं अवतार, ईश्वर, तीर्थंकर, बुद्ध । काश ! हमारा व्यक्तित्व भी ज्योतिर्मान होकर इतना योग्य बन जाये ।
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