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चलें, मन-के-पार कदम आगे-से-आगे बढ़ते हैं । वह भारण्ड पक्षी की तरह जागरुक रहता है । अपने व्यक्तित्व को प्रगति के पथ पर आगे-से-आगे बढ़ाने के लिए उसके कार्य बेमिसाल हो जाते हैं । उसका कृर्तृत्व कमाल का बन जाता है । इस दर्जे में पहुँचने वाले लोगों का दर्जा काफी ऊँचा होता है । वे फिर सही अर्थों में वी. आई. पी. हो जाते हैं । उन्हें खास शब्दों में 'वेरी इम्पोर्टेन्ट पर्सन' कह सकते हैं । इस दशा में व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली हो जाता है कि उसकी रग-रग से उज्ज्वलता की किरणें फूटने लगती हैं । जैसे सूर्य की किरणों से फूल खिल जाते हैं वैसे ही उसके सम्पर्क से दुनिया की मुरझायी कलियाँ किलकारियाँ मारने लगती हैं । उसके पास बैठने मात्र से ही व्यक्ति के मन-की-वीणा संगीत झंकृत करने के लिए मचलने लगती है । यह सोपान वास्तव में व्यक्तित्व के परिवेश में एक महान् क्रान्ति है ।
अब तक हमने सात सोपानों के संगमरमरी सौंदर्य का रसास्वादन किया । अब हम चढ़ेंगे स्वर्णिम हिमाच्छादित बुद्धत्व की ओर, व्यक्तित्व के चरम लक्ष्य की ओर । अब तक की यात्रा से, व्यक्तित्व की आभा आठवें दर्जे से गुजरने से ही मुखरित होती है | व्यक्ति को यहाँ आन्तरिक शक्तियों का पता लगने लगता है । उसका चेहरा मुरझाया हुआ नहीं होता हैं उसके चेहरे पर हमेशा राम-सी मुस्कान रहती है । कोई उन्हें तकलीफ भी दे दे, पेड़ पर औंधे मुँह भी लटका दे, तो भी उन पर असर नहीं होता । उनका व्यक्तित्व आत्मदर्शी बन जाता है ।
आत्मदर्शी जब समदर्शी बन जाये, तो उसके व्यक्तित्व में चार-चाँद लग जाते हैं । नौवें मंच में अहम-संघर्ष नहीं रहता । वे बाहुबली की तरह मन में रहने वाली अंहकार की बेड़ियों को पहचान लेते हैं । व्यक्ति समदर्शी का व्यक्तित्व तभी पा सकता है, जब आदमी अंहकार के मदमाते हाथी से नीचे उतरेगा । अहं के हाथी पर चढ़े-चढ़े क्या व्यक्तित्व में पूर्णता आ सकती है ?
बाहुबली ने संयम लिया, घोर तपस्या में लीन हो गये । पर घोर तपस्या करने मात्र से व्यक्तित्व पर आनेवाली धुंधलाहट समाप्त नहीं हो जाती । व्यक्तित्व पूर्णता के लिए तभी सफल बन पाता है, जब वह
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