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________________ भगवान महावीर ने विनम्रता का महत्त्व बताते हुए कहा 'विणओ सासणे मूलं, विणिओ संजओ भवे । विणयाओ विप्पमुक्कस्स, कओ धम्मो कओ तवो ॥ अर्थात् - विनय जिन शासन का मूल है। संयम तथा तप से विनित बनना चाहिए। जो विनय से रहित है, उसका कैसा धर्म और कैसा तप । बुद्ध ने विनम्रता को ध्यान बताया क्योंकि इसके द्वारा सत्य से साक्षात्कार किया जा सकता है । महात्मा गाँधी ने विनम्रता को अहिंसा का रूप दिया। हम विनम्र होकर ही अहिंसक और ध्यानी बन सकते हैं । सुकरात के मतानुसार सफलता का स्वर्ण सूत्र विनम्रता है । उन्होंने कहा कि यदि आप दुनिया को वश में करना चाहते हो तो स्वयं को वश में करो और इसके लिए ज़रूरी है सर्वप्रथम विनम्र बनो। यह सबसे बड़ा वशीकरण मंत्र है । जो कार्य आप लाखों रुपये खर्च करने पर भी नहीं करवा सकते हैं वह आप विनम्रता के बोल से करवा सकते हैं । यदि विनम्रता नहीं है अहं है जिसके कारण बड़े-बड़े विद्वान, धनाढ्य लोग भी असफलता के कगार पर पहुँच जाते हैं । कठोरता से एक बार कार्य में अवरोध उत्पन्न हो सकता है पर विनम्रता से पैदा हुआ अवरोध भी दूर होता है । - विनम्रता के साथ हमारे विचारों में निष्कंपता होनी चाहिए । जो अन्तर्मन से पवित्र होता है वही लम्बे समय तक विनम्रता, शिष्टता का जीवन व्यतीत कर सकता है। प्रशंसा, अनुमोदन, समर्थन, प्रोत्साहन ये विनम्रता के समीप रहते हैं । विनय मन की दासता नहीं है अपितु जीवन की ऊँचाई है। इसलिए हमारा उसमें सहज भाव प्रकट होना चाहिए । तपस्या के बारह प्रकारों में विनम्रता, वाक् नियंत्रण, अनुशासन और आचार इन चारों प्रकारों के अनुसार विनय के सात भेद बताए गए हैं, जिसमें लोकोपचार विनय को भी स्थान दिया गया है। कारण स्पष्ट है कि व्यवहार के बिना आचार नहीं चलता है। संघ और संस्थाओं को यही गुण जीवन व जीवंतता प्रदान करता है । 80 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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