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भगवन्त को नमस्कार कर रहे हैं। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि विनम्रता के द्वारा हम उन्नति के सोपान की ओर बढ़ सकते हैं और प्रभु पद को प्राप्त कर सकते हैं।
दुर्विचारों का संगठन अत्यन्त खतरनाक है। यह व्यक्ति को परमात्मा तक पहुँचने नहीं देता है । विनम्रता का गुण हमारे जीवन में तभी आ सकेगा जब हम अहम् का विसर्जन करेंगे। 'मैं सब कुछ जानता हूँ' यह मन का दम्भ है । मन के इस दम्भ को छोड़ दो। जीवन में कुछ पाना है, तो अहं से रिक्त होना पड़ेगा। जैसे खाली घड़े में ही पानी आ सकेगा, भरे में नहीं। और याद रखें दुनिया में कोई भी घड़ा जिंदगी भर पानी में क्यों न रहे, पर उसमें एक बूंद भी पानी नहीं आएगा वह घड़ा पानी से तभी भर सकता है जब झुकने को तैयार होगा। जब अहंकारी परिवार वालों को भारी लगता है वहीं विनम्र व्यक्ति को पड़ौसी भी प्यार देते हैं।
एक विद्वान संत के पास गया। उसके मन में अपनी डिग्रियों का बड़ा अहंकार था। वह सोचता था कि मैं सब कुछ जानता हूँ। उसने संत से कहा, मैं एम.ए., बी.एड., पी.एच.डी धारक हूँ। मैं बहुत ज्ञानी हूँ, पर जीवन का ज्ञान अधूरा है मैं पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ।संत ने मन में सोचा जब तक इसके मन में अहम् है कि मुझे बहुत ज्ञान है तब तक यह आत्म-सत्य प्राप्त नहीं कर सकता है।
विद्वान् के समक्ष संत ने काफी की एक केटली रखी। विद्वान के हाथ में कप-प्लेट दिया तथा काफी डालने लगा। कप-प्लेट दोनों भर गए काफी नीचे गिरने लगी। विद्वान के पेंट शर्ट खराब हो रहे थे। उन्होंने संत से कहा – यह आप क्या कर रहे हैं ? मेरे कपड़े खराब हो गए हैं। मैंने आपसे काफी पिलाने के लिए तो नहीं कहा था। ____संत ने विद्वान से कहा – मैं आपके सवाल का जवाब ही तो दे रहा हूँ। काफी कहाँ पिला रहा हूँ। उस विद्वान ने संत से कहा मैं आपकी बात समझ नहीं पाया हूँ।आप कृपा करके कुछ स्पष्ट बताइए।
संत ने कहा – जैसे भरे हुए कप में काफी डालने पर कोई फायदा नहीं हुआ बल्कि आपके वस्त्र खराब हो गए, वैसे ही आपके दिल एवं दिमाग़ रूपी
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