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कप-प्लेट का खाली होना आवश्यक है अन्यथा मेरा कहा हुआ सत्य बोध आप हृदय में उतार नहीं पाएंगे।
हम चाहे कितनी भी उन्नति कर लें पर हमें अपनी विनम्रता का त्याग नहीं करना चाहिए। मानवता को धारण करने के लिए विनम्रता का गुण अत्यधिक सहायक है। मानव कहलाना और उसके योग्य होना दोनों में काफ़ी अन्तर है। ___ एक कमिश्नर एक जमींदार के घर चैकिंग करने जाते हैं। वहाँ सबकी खुशहाली के समाचार ज्ञात करके कहते हैं कि आपको घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। हम आपके घर की जाँच करने आए हैं, पूर्ण तलाशी ली। एक दो कमी थी वो ठीक करने का कहकर जमींदार को प्रणाम करके कार से जाने लगे। जमींदार कमीश्नर के इस विनम्र व्यवहार से बहुत प्रभावित हुआ। उसने कहा - मैं साठ वर्ष का हूँ । न तो मैं इतना विनम्र हूँ क्योंकि मेरे में भी जमींदार का अहं है और न ही मैंने इतने बड़े पद के 'नर' को विनम्र देखा। आज तक मैं डॉक्टर, मिनिस्टर, कलेक्टर आदि सभी से मिला हूँ वे तो 'टर-टर' ही करते रहते हैं। परन्तु यह कमिश्नर 'नर' निकला। नर में लघुता होनी चाहिए। लघुता में ही विनम्रता है।
विणएव णरो गंधेणं, सोमयाइ रयणियरो।
महुर रसेण अमयं, जणपियत्तं लहद भुवणे॥ जैसे सुगन्ध के कारण चन्दन, सौम्यता के कारण चन्द्रमा और मधुरता के कारण सुधा विश्व प्रिय है, ऐसे ही विनय के कारण नर लोक प्रिय बनता है।
विनम्रता के अभाव में धर्म की कल्पना कैसे संभव है? देवाधिदेव परमात्मा महावीर स्वामी ने कहा कि 'विनयमूलो धम्मो।' धर्म का मूल विनय है। जैसे मूल के बिना वृक्ष की कल्पना नहीं की जा सकती है। वैसे ही विनय के बिना धर्म की कल्पना करना व्यर्थ है। विनय धर्म का प्राण है। विनय वृति को अपना लिया जाए तो धर्म स्वतः हो जाएगा।
जब जीवन में विनय का समावेश हो जाता है तो क्षमा, मार्दव, आर्जव इत्यादि सभी का समावेश स्वतः हो जाता है। यदि विनय नहीं है तो अन्य क्षेत्र भी सूखे रह जाते हैं।
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