SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नागरिकों को सावधान करना चाहूँगा कि वह अपने जीवन में इन व्यसनों के चक्कर में उलझे। यह हमारे घर, परिवार, इज्जत, केरियर और मस्तीभरी जिंदगी को तबाह कर देता है। क्या हम भारतवासी इस पर गौर करेंगे? युवाओं को मैं निवेदन करूँगी कि वे इस कत्ले ज़हर से दूर रहें और जो इस ज़हर को पी रहे हैं उन्हें इससे मुक्त होने की प्रेरणा दें और व्यसन-फैशन युक्त सरकारी नीतियों का जमकर विरोध करें ताकि देश व विश्व की आन-बान-शान को बचाया जा सके। एक बार जार्ज बर्नाडे शा को एक महिला ने रात्रि भोजन हेतु निमंत्रित किया। काफी व्यस्त होने के बावजूद भी उन्होंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया। अत्यधिक व्यस्त होने के कारण बर्नार्ड शा का जैसे ही कार्य समाप्त हुआ। सीधे उस महिला के घर गए। उन्हें देखते ही पहले तो महिला की आँखें ख़ुशी से चमक उठी किन्तु अगले ही क्षण उसके चेहरे पर निराशा के भाव छा गए। उसका कारण था कि शा अत्यन्त मामूली वस्त्र पहने हुए थे। उस औरत ने शा से कारण ज्ञात करना चाहा। उन्होंने कहा देर हो जाने के कारण वस्त्र बदलने का समय नहीं मिल पाया। फिर वस्त्रों से क्या होता है? वह महिला नहीं मानी। उसने कहा मेरा अनुरोध है आप जाकर अच्छे वस्त्र पहनकर आइए। शा ने कहा ठीक है - यह कहकर वह अपने घर चले गए। बहुत कीमती वस्त्र पहनकर आए यह देख महिला अत्यन्त प्रसन्न हुई। ___भोजन प्रारंभ हुए थोड़ी देर हो गई थी। सभी शॉ से मिलना चाहते थे। सबने अचानक देखा कि शा आइसक्रीम तथा अन्य खाने की चीज़ों को वस्त्रों पर पोत रहे हैं। साथ ही कह रहे हैं – भोजन करो मेरे कपड़ों, भोजन करो। तुम क़ीमती हो इसलिए तुम्हारा मूल्य है। निमंत्रण तुम्हीं को मिला है इसलिए भोजन भी तुम ही करो। सब कहने लगे - शॉ साहब आप यह क्या कर रहे हैं ? शॉ ने कहा- मैं वही कर रहा हूँ मित्रों जो मुझे करना चाहिए। यहाँ निमंत्रण मुझे नहीं मेरे वस्त्रों को मिला है। इसलिए आज का खाना मेरे वस्त्र ही करेंगे। उनके यह कहते ही पार्टी में सन्नाटा छा गया। निमंत्रण देने वाली महिला की शर्मिंदगी की सीमा नहीं रही। वह समझ चुकी थी कि व्यक्ति का मूल्यांकन वस्त्रों से नहीं होता। प्रतिभा 50 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy