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________________ भी बुद्धिमान नहीं हो सकते हैं। प्राचीन गुरुकुल की यह प्रणाली रही है कि विद्यार्थी अध्ययन की पूर्णता के बिना किसी भी प्रकार की राजनैतिक गतिविधियों में भाग नहीं लेते थे । शालीनता रखते थे । एकनिष्ठ होकर विद्या प्राप्त करते थे, उसमें निपुणता प्राप्त करते थे। युवावस्था में अध्ययन की समाप्ति के पश्चात् देश, समाज, मातापिता परिवार के प्रति कर्त्तव्य का पालन करते थे आज भी इसी परम्परा को निभाने की आवश्यकता है । विद्यार्थियों को विद्याध्ययन की समाप्ति तक किसी भी प्रकार के राजनैतिक विवादों या अन्य विवाद के क्षेत्रों में भाग नहीं लेना चाहिए । विद्याध्ययन को ही एक मात्र लक्ष्य मानकर संस्कृति संरक्षण के साथ अपना सर्वांगीण विकास करना चाहिए । शिक्षा स्वयं कोई ध्येय नहीं है, वह जीवन के ध्येय की पूर्ति का साधन मात्र है । अगर पर्याप्त शिक्षा प्राप्त करके भी कोई उसे व्यवहार में नहीं ला सकता तो वह अधूरी है। शिक्षा का जीवन और जीवन की समस्याओं से घनिष्ठ संबंध है । जो जीवन हम व्यतीत कर रहे हैं उसे बेहतर से बेहतर बनाने की ओर अग्रसर करने की साधना ही शिक्षा है । पुस्तकों में मात्र अक्षर और भाषा मिलती है, उसका अर्थ सृष्टि में रहता है । पर शिक्षा का अत्यधिक महत्त्व है । परन्तु दीक्षित हुए बिना शिक्षा के द्वारा घोर अनर्थ हो जाता है। अशिक्षित मनुष्य के द्वारा समाज को उतनी हानि नहीं होती जितनी दीक्षारहित शिक्षित मनुष्य से होती है। हमारे प्राचीन आचार्य अपने शिष्यों को शिक्षा देने के साथ दीक्षा देना कभी नहीं भूलते थे । एक राजा ने अपने राजकुमार को किसी आचार्य के पास शिक्षा प्राप्त करने भेजा। जब राजकुमार की शिक्षा के समाप्त होने का समय आया तो महाराजा स्वयं उसे लेने के लिए गुरु के आश्रम में उपस्थित हुए । राजा ने आचार्य से पूछा - भगवन् ! राजकुमार की शिक्षा समाप्त हो गई ? गुरु ने उत्तर दिया – राजन् ! इसकी शिक्षा पूरी हो गई है, सिर्फ दीक्षा का एक और सबक देना बाकी है। वह मैं अभी दे देता हूँ । इतना कहकर गुरुजी ने राजकुमार को बुलाया और पास में रखे हुए कोड़े से राजकुमार की पीठ पर तीन-चार प्रहार किए। तत्पश्चात् कहा Jain Education International For Personal & Private Use Only वत्स | 35 www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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