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________________ अधिकारी हूँ। जो लोग अपना कर्तव्य निभाना नहीं जानते, उन्हें इस देश में रहने का कोई हक नहीं।' राष्ट्रपति के आदेश पर तत्काल अमल हुआ। राष्ट्र सेवा प्रत्येक नागरिक का सर्वोच्च कर्त्तव्य है। ___आज हमारी शिक्षा प्रणाली दूषित हो रही है। संस्कार प्रायः समाप्त हो रहे हैं, सभ्यता से हम भटक रहे हैं। एक जमाना था, जब एकलव्य अपने गुरु द्रोणाचार्य को अंगूठा काटकर देते थे। आज अंगूठा दिखाने का जमाना आ गया है। विद्यालयों में भी हिंसा और आतंक का प्रवेश हो गया है। अभी गुड़गाँव में 8वीं कक्षा के छात्र ने अपने मित्र छात्र से नराज़गी होने पर गोली मारकर हत्या कर दी। यह सब शिक्षा की गिरावट के कारण है। ज़रा-सी इच्छा पूर्ति होती नहीं है तो उसके कारणों का, समस्याओं का समाधान तो हम करते नहीं हैं और फिर चाहे विद्यार्थी हो या शिक्षक हड़ताल पर उतर आते हैं। विद्यार्थियों के विचार तो इतने धूमिल हो गए हैं कि हड़ताल करना, बसें जलाना, तोड़-फोड़ करना, सरकारी सम्पत्ति को नष्ट करना गौरव की संस्कृति बन रहा है। जबकि यह अनर्थों की श्रृंखला है। हम हड़ताल पर जाकर यह समझते हैं कि हम राजनेताओं से मिल रहे हैं, अख़बार में मेरा नाम आ रहा है, फोटो आ रही है लोग हमें पहचान लेंगे। इससे हम प्रसन्न होते हैं। हमने कभी यह नहीं सोचा कि सरकार हमसे अलग संस्था नहीं है, वहाँ का नुकसान हमारा नुकसान है। हमें यदि प्रसिद्धि प्राप्त करनी है, अख़बार में नाम एवं फोटो देना है तो अच्छा काम करो। इससे संस्कारों की रक्षा भी होगी। जापान में कार्य दिवस पर हड़ताल नहीं होती है। यदि किसी को हड़ताल करनी है तो छुट्टी के दिन करते हैं । वह भी प्रतीकात्मक रूप में। वे तोड़फोड़, आगजनी नहीं करते, अपितु हाथ पर, मस्तिष्क पर काली पट्टी बाँध ली मौन जुलूस निकाल दिया, तख्ती पर अपनी समस्या लिख ली। आप कहेंगे कि छुट्टी क्यों बिगाड़े। वहाँ की व्यवस्था यह है कि कार्य को क्यों बन्द करें। किसी भी प्रकार की सम्पत्ति को क्यों नुकसान पहुँचायें। उसी प्रकार हमें भी अपनी समस्याओं को शांति पूर्ण तरीके से अवगत कराना चाहिये। पढ़ाई छोड़कर, कक्षाओं से भागकर, तोड़फोड़ प्रदर्शन करते हैं तो इसमें हमारा ही नुकसान है। आप अभी युवा हैं, विद्यार्थी हैं हमें दिशाहीन नहीं होना है। अपनी मंज़िल, अपने उद्देश्य से नहीं भटकना है। कौए की भाँति चंचल मन रखने वाले विद्यार्थी कभी 34 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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