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________________ जाओ! तुम्हारा कल्याण हो। राजा गुरु के इस कार्य से अत्यधिक चकित हुए। उन्होंने नम्रतापूर्वक पूछा अपराध क्षमा हो गुरुदेव! राजकुमार की दीक्षा का यह पाठ मुझे समझ में नहीं आया। गुरु ने मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए कहा-अरे भाई ! इसे शासक बनना है। अपनी सत्ता और शिक्षा के मद में अगर यह अन्याय, अत्याचार और मारपीट करने पर उतारू हो जाएगा तो आज का यह सबक इसे याद दिला देगा कि मार की तकलीफ कैसी होती है। बिना दर्द सहे यह पराए दुःख दर्द को कैसे समझ सकेगा। कितना सुंदर उदाहरण है हमारे मनीषियों के सामने भूत, भविष्य, हस्तकमलवत् के सामने थे। उनकी दिव्य दृष्टि हर जगह पहुँचती थी परन्तु आज यह विडंबना है यदि शिक्षक बच्चे को दो चाँटे लगा दे तो कई अभिभावक स्कूल में आकर आक्रोश व्यक्त करते हैं । परिणामस्वरूप शिक्षक भी अपने उद्देश्य को पूर्ण नहीं कर रहे हैं। उनका उद्देश्य विद्यार्थी को आलोक युक्त श्रेष्ठ ज्ञान देना होना चाहिए तभी वह शिक्षक सच्चा गुरु बन पाता है। जो छात्र के सुंदर व्यक्तित्व निर्माण में अपना व्यक्तित्व विलीन कर दे वही गुरु, वही गुरुपद का अधिकारी कहला सकता है। शिक्षा सामर्थ्य है और दीक्षा प्रकाश है। अगर व्यक्ति अपने सामर्थ्य का उपयोग अंधेरे में ढेला फेंकने के समान करता है तो निश्चय ही वह अपने विनाश को निमंत्रण देता है। उसका यह संकल्प होना चाहिए कि वह किसी भी परिस्थिति में अपने बल का दुरुपयोग नहीं करेगा। उससे कर्त्तव्य भावना को बल मिलता है। करणीय, अकरणीय का विवेक जाग्रत होता है यही दीक्षा की महिमा है। सामर्थ्य एवं विवेक विरोधी कार्य नहीं करने का निर्णय कर्तव्य परायणता के लिए अनिवार्य है। एक व्यक्ति ने मुझे बताया मैं सुबह-सुबह नहा-धोकर उत्साह से भरा हुआ अपने नए स्कूल में पढ़ाने के लिए पहुँचा। घंटा बजते ही मैं दसवीं कक्षा में गया।सभी बच्चों ने मेरा अभिवादन किया। __ सबसे पहले परिचय का दौर चला। तत्पश्चात् पीछे की पंक्ति में बैठे हुए 36 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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