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मन को बनाएँ अपना मीत
बच्चों की चंचलता व मन की चंचलता में ज़्यादा फ़र्क नहीं
है, जरूरत है केवल समझाने की
' हमारी पाँचों इन्द्रियों का मुख्य केन्द्र मन है। हम पाँचों इन्द्रियों को स्वच्छ रखते हैं, किन्तु मन की स्वच्छता को गौण कर देते हैं। सुबह उठते ही हाथ-मुँह धोते हैं, दाँत साफ करते हैं, शरीर को स्वच्छ-सुन्दर बनाते हैं। घर को खूब साफ-सुथरा एवं व्यवस्थित रखते हैं। सफाई का कारण पूछने पर आपका एक ही ज़वाब रहता है मुझे गंदगी ज़रा भी पसंद नहीं है, पर आपने कभी सोचा कि इन इन्द्रियों का कार्यवाहक केन्द्र मन कितना स्वच्छ है ? आप कभी भी यह नहीं कहते हैं कि मुझे मन की गंदगी बिल्कुल भी पसंद नहीं है । मैं शरीर और घर की तरह मन को शुद्ध, स्वच्छ रखना चाहता हूँ। हमारे मन में अपवित्र, अशुद्ध, एवं मलिन विचारों का कूड़ा-कर्कट जमा हुआ है। क्या हम कभी इनके बारे में सोचते हैं ? पुराणों में मन को मलिन बनाने वाले बारह दोष बताए गए हैं। नगर पालिका की कचरा पेटी से भी ज़्यादा कचरा भरा पड़ा है हमारे मन में। शोक, क्रोध, लोभ, काम, माया-मोह, आलस्य, ईर्ष्या, मान, सन्देह,
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