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________________ देखकर इस घर की परम्परा निभाऊँगी ।' उसे धक्का लगता है और वह इतना ही कहती है, 'तुझे नर्म रोटी खिलानी है तो तू बनाकर खिला दे ।''कोई बात नहीं मम्मीजी मैं बनाकर खिला दूँगी। जब मुझे बनाना है तो अपनी बूढ़ी दादी सास के लिए भी खाना बनाने में कहाँ तक़लीफ़ है । ' एक समझदार बहू के कारण अगले दिन से बूढ़ी दादी को नर्म रोटी मिलनी शुरू हो गई। दूसरे दिन जब वह दादी की थाली उलट-पलट कर देखती है तो सास पूछती है, क्या देख रही है । बहू जवाब देती है, 'देख रही हूँ जब आप बूढ़ी हो जाएँगी तो स्टील की थाली लगानी है या मिट्टी की ।'' तो " क्या तू मुझे मिट्टी के ठीकरों में खाना खिलाएगी ?' 'मैं कहाँ खिलाऊँगी, मैं तो बस आपके घर का रिवाज़ सीख रही हूँ । थाली बदलती है। बूढ़ी दादी के फ़टे-पुराने, मैले-कुचैले वस्त्र भी बदल जाते हैं, टूटी-फूटी चारपाई की जगह अच्छा पलंग और बिस्तर लग जाते हैं। कमरा सुव्यवस्थित हो जाता है और जब उसका अंत समय निकट आता है तो वह अपने पोते की बहू को इतना आशीर्वाद देकर जाती है कि आज भी बहू अपनी दादी सास को याद कर अश्रु बहाती है, श्रद्धा समर्पित करती है कि उनके आशीर्वाद से ही आज परिवार दिन-ब-दिन सुख-समृद्धि की ओर निरंतर प्रगति कर रहा है । जो इंसान अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए अपनी पाई-पाई लुटा देता है, वही बच्चे अपने बूढ़े माँ-बाप को कतरा भर रोशनी देने से क्यों कतराते हैं ? जिन कंधों पर बैठकर हमने कभी ज़िंदगी के मेले देखे थे आज जब वे कंधे झुक गए हैं तो मेरे भाई, उन्हें अपने कंधे का सहारा देने से क्यों बचते फिरते हो ? निश्चय ही आज की पीढ़ी बहुत समझदार हो गई है, पर जितनी समझदार हुई है उतनी ही ख़ुदगर्ज़ भी । माँ-बाप के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं मानो उनके सामने वे निरे-बुद्ध हों। बच्चों को लगता है कि जो उन्होंने कह दिया वह अप-टू-डेट है, माँ-बाप जो कहते हैं वो तो आउट-ऑफ-डेट है। भाई याद रखो, जो बुढ़ापा आज उन्हें है, कल वह तुम्हें भी होगा । बुढ़ापा सभी को आने वाला है। अगर आप चाहते हैं कि बुढ़ापे में आपकी सेवा हो सके तो कृपा कर अपने बुज़ुर्गों की उपेक्षा न करें । प्रकृति की व्यवस्था तो हम सभी जानते हैं कि हम पर वापस वही आएगा, जो हम करेंगे या करने वाले हैं। अच्छा करो, अच्छा पाओ; सेवा करो, सेवा पाओ । Jain Education International For Personal & Private Use Only | 95 www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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