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________________ बीच में ज़्यादा टोका-टोकी करोगे तो वे तुमसे पिंड छुड़ाना चाहेंगे। वहीं अगर तुम उन्हें केवल आशीर्वाद दोगे तो वे तुम्हें सिर पर बिठाकर रखेंगे। बच्चे भी घर में बुजुर्गों के साथ सहयोग करें। बूढ़ों की केवल एक ही ख्वाहिश होती है कि बुढ़ापे में बेटा उनका सहारा बन जाए। जैसे जब बेटा बच्चा था तो उन्होंने हाथ थामा था और आज जब वे बूढ़े हो गए हैं तो बेटा हाथ थाम ले। बुढ़ापा तो बचपन का पुनरागमन होता है। तभी तो युवा और बुज़ुर्ग एक-दूसरे के लिए सार्थक हो सकेंगे और इसी बहाने उनका हमारे ऊपर रहने वाला फ़र्ज़ कुछ कम हो सकेगा। कम-से-कम उतने वर्ष तक तो उनकी अँगुली थामें जितनी उन्होंने हमारे बचपन में थामी थीं। यह न समझें कि आप केवल अपनी मेहनत के बलबूते पर पनप रहे हैं, जितनी आपकी मेहनत है उससे कहीं अधिक आपके माता-पिता के आशीर्वाद हैं जो आप प्रगति की सीढ़ियाँ चढ़ रहे हैं। उन्हीं की दुआओं से अगली सात पीढ़ियाँ भी फलतीफूलती हैं। जिन्हें माँ-बाप की दुआएँ नहीं मिलतीं वे तक़दीर के कितने भी सिकंदर क्यों न हों, पर कभी-न-कभी तो वे विडम्बना और निराशा के गर्त में गिरते ही हैं। __मैं एक परिवार से परिचित हूँ। बात तब की है जब उस घर में नई-नई शादी हुई बहू आई थी। वह अपनी दादी सास के पास बैठी हुई थी, उसके लिए जो खाना आया उसमें कुछ रूखी-सूखी-सी कड़क रोटियाँ, पतली-सी दाल और दिखने में बेस्वाद-सी सब्जी थी। बहू को बहुत अटपटा लगा कि बूढ़ी दादी जिसके मुँह में दाँत भी नहीं हैं उन्हें ऐसा खाना ! दूसरी बार जब सास रोटी देने आई तो उसने देखा कि बहू रोटियाँ उलट-पलट कर देख रही है। सास ने पूछा, 'क्या देख रही है ?' उसने कहा, 'कुछ नहीं मम्मीजी, बस देख रही हूँ कि आपके घर का रिवाज़ क्या है ? जब मेरी शादी हुई तो विदाई के वक़्त मेरे पापा ने कहा था इस घर में जो रिवाज़ चलते थे उन्हें भूल जाओ और जहाँ जा रही हो वहाँ के रिवाज़ अपनाना, वही सीखना, उन्हीं को निभाना। तो मैं देख रही हूँ कि जो आप दादी माँ के साथ निभा रही हैं, वही मुझे आगे निभाना है।' सास ने पूछा 'मतलब'। बहू ने कहा, 'मतलब क्या, रिवाज़ सीख रही हूँ। मम्मीजी मैं कुछ नहीं कर रही सिर्फ इस घर का संस्कार सीख रही हूँ।' सास ने कहा 'यानि तू मुझे ऐसी रोटियाँ खिलाएगी।''नहीं मम्मीजी मैं तो आपको 94 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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