________________
व्यवस्था के मुताबिक जिनका जन्म हुआ है उन्हें मृत्यु के द्वार से गुजरना ही पड़ता है, जो फूल खिलता है उसे मुरझाना भी पड़ता है। धरती पर आज तक कोई ऐसा दिन नहीं आया जब सूरज उगा तो हो, पर अस्त न हुआ हो। संयोग के साथ ही वियोग भी है। अगर व्यक्ति प्रकृति की इस व्यवस्था को प्रेम से स्वीकार कर ले तो उसके जीवन की आपाधापी ख़ुद-ब-ख़ुद समाप्त हो जाए। __व्यक्ति की अस्सी प्रतिशत समस्याएँ तो प्रकृति की व्यवस्था को स्वीकारते ही कम हो जाती हैं। जिस पेड़ पर कोंपल लगती है, पत्ते हरे होते हैं, पीले पड़ते हैं और झड़ जाते हैं, पर इसके बावजूद पेड़ को कोई शिकायत नहीं होती, ताप
और संताप नहीं होता। अगर हम इस तथ्य को समझ लें तो किसी का प्रेम हमारे लिए राग और मोह का अनुबंध न बनेगा और किसी का विरोध हमारे लिए द्वेष का आधार नहीं बनेगा। अनुकूलता, प्रतिकूलता में जीवन स्थिर रहेगा। जीवन की असली साधना यही है कि व्यक्ति अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही स्थितियों में सहज रहे । यहाँ मित्र ही शत्रु और शत्रु ही मित्र बन जाते हैं। प्रकृति के साथ तालमेल करके जीने से जीवन बहुत ही सहजता से जीया जा सकेगा। जीवन को सहजता से जीना ही जीवन की सार्थकता और सफलता का मंत्र है। ____ हम सभी जानते हैं कि गई हुई जवानी और आया हुआ बुढ़ापा लौटाया नहीं जा सकता। बालों को रंगकर बुढ़ापे को छिपाया तो जा सकता है, पर हटाया नहीं जा सकता। बुढ़ापा जीवन का जन्म जैसा ही सत्य है। राम हो या रहीम, कृष्ण हो या कबीर, महावीर हो या मोहम्मद हर किसी को जन्म, यौवन, रोग और बुढ़ापा इन चारों गलियारों से गुज़रना पड़ता है। बुढ़ापे का कोई अपवाद या विकल्प नहीं है। इसलिए बुढ़ापे को समस्या न समझें। यह तो हक़ीक़त है। यौवन हक़ है तो जरा हक़ीक़त। हम हक़ीक़त को स्वीकार करें। अगर हँसकर स्वीकारेंगे तो मृत्यु दस वर्ष दूर रहेगी और रोते-बिलखते काटेंगे तो मृत्यु दस वर्ष पूर्व ही आ जाएगी। हम पूछ सकते हैं : क्या मौत को आगेपीछे किया जा सकता है ? नहीं, यह तो संभव नहीं है, लेकिन ख़ुश रहकर आप हर ओर ख़ुशियाँ बिखेर सकते हैं। तब सब आपके साथ होंगे और आपका जीवन खुशनुमा रहेगा और मृत्यु दूर ही दिखाई देगी अन्यथा विलाप 88 |
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org