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करने से आप तो दु:खी होंगे ही, सबको दु:खी कर डालेंगे और प्रतिपल मृत्यु की कामना करते हुए उसे नज़दीक बुला लेंगे।
मृत्यु चाहे जब आए, जिस जीवन का प्रारंभ हुआ है उसका समापन तो होगा ही। दुनिया में सात ही वार होते हैं। इन्हीं में किसी एक दिन जीवन की शुरुआत होती है और इन्हीं में से किसी एक दिन जीवन का समापन होता है। सोमवार को हम जन्म लेते हैं तो मंगलवार को स्कूल जाते हैं। बुधवार को केरियर बनाते हैं तो गुरुवार को शादी करते हैं, शुक्रवार को बच्चे होते हैं तो शनिवार को बूढ़े हो जाते हैं और इस तरह रविवार को कहानी ख़त्म हो जाती है। इन सात दिनों में से हम किसी भी दिन अपने जीवन की यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं और किसी भी दिन बुढ़ापे के सत्य से रू-ब-रू हो सकते हैं। ___हम बुढ़ापे को समस्या न समझें। हमने अपनी लापरवाही और असजगता से बुढ़ापे को समस्या बना लिया है। बुढ़ापा समस्या नहीं है, यह नैसर्गिक शारीरिक प्रक्रिया है। व्यक्ति ज्यों-ज्यों बूढ़ा होता है उसके अंदर अशांति, उद्वेग, तनाव और असुरक्षा की भावना हावी होती जाती है। बचपन में अज्ञान
और अबोधता रहती है। युवावस्था में अशांति और उन्माद चढ़ जाता है तो बुढ़ापे में परिग्रह और असुरक्षा सबसे अधिक रहती है। मेरी समझ से बुढ़ापा अशांति और असुरक्षा का पड़ाव नहीं है, वरन् शांति का धाम है। आपने अपना जीवन कैसा जीया, बुढ़ापा उसकी परीक्षा है।
अगर आप बुढ़ापे को समस्या समझेंगे तो हर उम्र एक समस्या है। बचपन भी, यौवन भी और बुढ़ापा भी, पर अगर इसे प्रकृति की व्यवस्था समझें तो बुढ़ापा न कोई रोग है, न अभिशाप । बुढ़ापा तो शांति, मुक्ति, समाधि और कैवल्य का द्वार है। अपने घर और आसपास रहने वाले बुजुर्गों को देखें कि एक बूढ़ा-बुजुर्ग व्यक्ति तो परिपक्वता की निशानी है। वह ज्ञान और अनुभव का विशाल भंडार है। वह तो जीवन के उपन्यास का सार है, उपसंहार है। बुढ़ापे से वही व्यक्ति घबराएगा जिसने बचपन और यौवन दोनों को कचरापेटी में डाल दिया। अब भला स्कूल जाने से आखिर वही बच्चा तो डरेगा न् जिसने अपना होमवर्क पूरा नहीं किया। आयकर अधिकारियों से वही व्यापारी घबराएगा जिसके बही-खाते ठीक नहीं होंगे और मौत को क़रीब आते देखकर वही रोएगा-धोएगा जिसने केवल भोग किया, पर योग का द्वार न खोला। जिसने
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