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________________ बुढ़ापे की सार्थकता के शानदार नुस्खे 25000 M इंसान के बुढ़ापे का संबंध उसके तन की अपेक्षा मन के साथ अधिक होता है। अगर उसके मन में आशा, उत्साह, ऊर्जा और उमंग हो तो वह सत्तर वर्ष की आयु में चालीस वर्षीय व्यक्ति की तरह क्रियाशील रह सकता है। नहीं तो निराशा और कुंठा से घिरा हुआ व्यक्ति चालीस वर्ष की उम्र में ही सत्तर के तुल्य हो जाता है। मज़बूत मन का व्यक्ति उम्र को जीत लेता है। नब्बे बंसत देखकर भी पिकासो चित्रकारी किया करते थे। महान् दार्शनिक सुकरात सत्तर वर्ष की उम्र में भी मानवजाति के समक्ष अपने दर्शन का प्ररूपण किया करते थे। बहत्तर वर्ष की आयु में भगवान महावीर लगातार चौबीस घंटे तक उपदेश और धर्म मार्ग का प्ररूपण करने में समर्थ थे। मन का युवा होना ज़रूरी है। मन डूबा तो नाव डूबी । जो लोग बुढ़ापे को कारागार समझते हैं या चारदीवारी में रहकर दमघोंट्र संघर्ष समझते हैं उनसे अनुरोध है कि वे बुढ़ापे को जीवन का स्वर्ण-शिखर समझें। प्रकृति की | 87 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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