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________________ व्यवसाय, परिवार-समाज में आपसी संबंधों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इसीलिए व्यक्ति को चाहिए कि वह सबसे पहले अपने क्रोध और चिंता पर विजय प्राप्त करे। जो क्रोध और चिंता से लड़ना नही जानते, जिन्हें इन पर विजय प्राप्त करने की कला नहीं आती, वे अकाल-मृत्यु के शिकार बनते हैं। __भगवान महावीर ने ध्यान के चार रूप कहे थे-आर्त-ध्यान, रौद्र-ध्यान, धर्म-ध्यान और शुक्ल-ध्यान। जो व्यक्ति लगातार चिंता से घिरा रहता है वह आर्त-ध्यान का शिकार होता है और जो सतत क्रोध करता रहता है वह रौद्रध्यान में मशगूल रहता है। लेकिन जो चिंता की बजाय चिंतन करता है वह धर्म-ध्यान का अनुयायी होता है, पर जिसके मन में न चिंता है और न ही चिंतन, जो चित्त की हर उठा-पटक से मुक्त होता है वह शुक्ल ध्यान का अधिकारी होता है। आर्त और रौद्र ध्यान से घिरा व्यक्ति जीवन भर इन्हीं के चक्रव्यूह में फँसा रहता है। बाहर से तो लगता है कि वह मंदिर जा रहा है, सामायिक कर रहा है लेकिन पता नहीं चित्त में कितनी उधेड़बुन चलती रहती है। न तो दान देने से स्वर्ग मिलता है और न ही चोरी करने से नरक, बल्कि अपने मन के शुभ और अशुभ परिणामों के अनुसार व्यक्ति स्वर्ग या नरक का अधिकारी बनता है। __हम सभी अपने मन को देखें कि वहाँ कैसी उधेड़बुन चल रही है। चिंता घुन है और चिंतन धुन। जैसे घुन गेहूँ को भीतर-ही-भीतर खोखला कर देती है, वैसे ही चिंता जिसे लग जाती है वह उसे चिता के रास्ते ले जाती है। चिंता और चिता में मात्र एक बिंदी का फ़र्क है लेकिन चिता तो एक बार ही जलाती है और चिंता जीवनभर जलाती रहती है। एक बार मरना आसान है लेकिन रोज़-रोज़ का मरना और जलना व्यक्ति के लिए आत्मघातक है। कोई भूतकाल की बातों को लेकर चिंतित है तो किसी को भविष्य की बातों की चिंता है। चिंता से उबरना है तो अपने वर्तमान-जीवन के मालिक बनिए, इसी का आनंद लीजिए। जो बीत गया सो बीत गया। क्या आप बीते हुए समय को लौटा सकते हैं? हाँ, और जो आया नहीं है उसके लिए भी कैसी चिंता! जो कल दिखाएगा वह उसकी व्यवस्था भी देगा। जिसने चोंच दी है वह चुग्गा भी देगा। जिसे न किसी बात की चिंता है, न किसी बात की चाह और न किसी | 77 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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