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ये दोनों ऐसे रोग हैं जो न केवल धार्मिक को बल्कि नास्तिक को भी परेशान करते हैं। धर्म अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन चिंता और क्रोध मनुष्य मात्र को होते हैं। छाया की तरह चिंता और क्रोध व्यक्ति के साथ लगे रहते हैं । सास को बहू की, बहू को सास की, पति को पत्नी की, पत्नी को पति की, पिता को पुत्र की, पुत्र को पिता की चिंता किसी-न-किसी रूप में लगी रहती है। बच्चे के जन्म के साथ ही माता-पिता की चिंता शुरू हो जाती है । बच्चा थोड़ा-सा बड़ा हुआ कि स्कूल भेजने की चिंता, स्कूल जाने लगे तो पढ़ाई की चिंता, पढ़ने लगे तो परीक्षा की चिंता, परीक्षा हो जाए तो परीक्षाफल की चिंता । बच्चा थोड़ा-सा बड़ा हो जाए तो क्या विषय लेकर आगे पढ़ना है, किस कॉलेज में एडमीशन लेना है इसकी चिंता । मनपसंद विषय मिल जाए तो फीस की, छात्रवृत्ति की चिंता । कॉलेज की शिक्षा पूर्ण हो जाए तो केरियर बनाने की चिंता, नौकरी की चिंता । नौकरी मिल जाए तो शादी की चिंता, शादी हो गई तो बच्चों की चिंता यानी चिंता का चक्र अनवरत गति से चलता रहता है। सड़क पर चले तो स्कूटर पाने की चिंता, कार पाने की चिंता, चिंताओं का जाल फैलता चला जाता है। बुढ़ापा आने पर बच्चे सेवा करेंगे या नहीं और मरने पर स्वर्ग मिलेगा या नरक, इसकी चिंता भी सताती रहती है ।
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इस मुगालते में न रहें कि आप पत्नी या पति के साथ जी रहे हैं, आप सिर्फ़ क्रोध और चिंता के साथ जीते हैं वही आपका पति या पत्नी है । आप स्वयं अपनी ओर देखिए और अपना मूल्यांकन कीजिए कि किस तरह आपको चिंता सताती है। चिंता का पहला दुष्प्रभाव व्यक्ति के मन और सेहत पर होता है। मनुष्य का दिमाग़ उसके जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है । लेकिन चिंताओं के बढ़ने के साथ तनाव बढ़ता है और मन अस्थिर होता चला जाता है। जिसके जीवन में तनाव ने अपना स्थान बना लिया है उसका मन उस मिट्टी की तरह हो जाता है जो तालाब का पानी सूख जाने पर मिट्टी का होता है । गर्भवती स्त्री यदि चिंतित रहे तो गर्भस्थ शिशु में ख़ून की कमी हो जाएगी । चिंता से व्यक्ति की स्मरण-शक्ति प्रभावित होती है, नेत्र - ज्योति क्रमशः कम हो जाएगी, स्वादग्रंथि की क्रियाशीलता कम हो जाएगी, उसके बोलने के तरीके पर प्रभाव पड़ेगा, बोलने में असम्बद्धता आएगी। गले में हमेशा खरास बनी रहेगी । चिंता के कारण ब्रेन हेमरेज हो सकता है, चिंता से स्वास्थ्य के साथ-साथ व्यापार
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