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चिंता छोड़ें, सुख से जिएँ
मारे जीवन के दो प्रबल शत्रु हैं - क्रोध और चिंता । ये दोनों भाई-बहिन की तरह हमारे साथ रहते हैं । जिनके जीवन में क्रोध और चिंता नहीं हैं उनका दिन तो चैन से बीतता ही है उनकी रातें भी मंगलमय होती हैं। क्रोध से जहाँ व्यक्ति अपने आपे में नहीं रहता, उसके स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है और आपसी रिश्तों में खटास आती है वहीं चिंता मानसिक संतुलन को आघात पहुँचाती है, स्वभाव को चिड़चिड़ा बनाती है, व्यापार और व्यवसाय को प्रभावित करती है, मानसिक शांति और केरियर दोनों ही क्षतिग्रस्त होते हैं । क्रोध से तो दूसरों पर बुरा असर अधिक होता है लेकिन चिंता से स्वयं पर ही घातक प्रभाव पड़ता है । क्रोध से शांति का नाश होता है तो चिंता से सौन्दर्य का । क्रोध से विवेक का विनाश होता है तो चिंता से मनोबल का । कुल मिलाकर ये दोनों ही हमारे दिलोदिमाग़ के दुश्मन हैं, रोगों के जनक हैं ।
वैसे सभी को कभी-न-कभी क्रोध भी आता है और चिंता भी सताती है ।
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