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फ़र्क पड़ता है। ठीक है, गोरी बहू आँखों को अच्छी लगती है पर तुम उसे आखिर कितना चाटोगे ? जीवन में रंग का नहीं जीने के ढंग का महत्त्व है। घर में बहु का आदर रंग के कारण नहीं वरन उसके गुणों के कारण होता है। आप एक बड़े बाप की बेटी हैं और एक बड़े घर की बहु । स्वयं को एक अच्छी कुलवधु साबित कीजिए ।
आप साल में एक बार अपने सास-ससुर को तीर्थयात्रा कराने के लिए अवश्य ले जाएँ और भाइयो, हो सके तो आप महिने में जितना कमाते हैं, उसका एक अंश अपने माता-पिता को ले जाकर अवश्य दें। उनसे कहें कि आप धर्म में खर्च करें, गौशालाओं के लिए उपयोग करें, दीन-दुखियों की मदद करें। जिस प्रकार हम अपने बच्चों की फीस, बीवी की साड़ी, घर का सामान, घर का किराया चुकाते हैं तो क्या हम कुछ हिस्सा माता-पिता को नहीं दे सकते ? आखिर भाई उनकी भी कुछ ख़्वाहिशें हैं, वे भी धर्म में कुछ खर्चा करना चाहते हैं, अपने पोते-पोतियों और दोहिते - दोहितियों का लाड़ करना चाहते हैं। और यह सब तभी संभव होगा जब तुम अपनी कमाई का एक चाराना उन्हें दोगे। जब हम असहाय थे तो उन्होंने हमें थामा था और अब जब वे बुजुर्ग हो चुके हैं तो हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम उनकी अंगुली थामें उन्होंने हममें अपना भविष्य देखा । हम उनमें अपने वर्तमान को सजाएं -संवारें । याद रखिएगा जो अपने माँ-बाप का न हो सका वो किसी बीवी या दोस्त का क्या होगा ।
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माता-पिता के प्रति अपने फ़र्ज़ अदा करने के लिए भाई-भाई सब साथ रहो । रोटी दो हो और खाने वाले चार, तब भी सब मिल - बांट कर खाओ । भाइयों को हंसते-खिलते देखकर ही माइतों को खुशी होती है। सच्चाई तो यह है कि माँ-बाप के आँचल में ही दुआओं का वह ख़ज़ाना भरा हुआ है जिसे तुम जितना लूटना चाहो, लूट लो । याद रखो, माँ-बाप को भूखा रखकर अगर वृद्धाश्रम में दान भी दोगे तो ऐसा करना दान का अपमान कहलाएगा। माँ-बाप के भोजन की व्यवस्था न करके अगर कोई कबूतरों को दाना भी डालता है तो कबूतर भी ऐसे दानों को स्वीकार करने से परहेज़ रखेंगे। मंदिर की देवी को चुनरी ओढ़ाने से पहले कृपया अपनी देवी माँ की फटी हुई चुनरिया को बदलो तभी जगदम्बा मंदिर में चढ़ाई गई चुनरिया को स्वीकार करेगी ।
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