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रहन-सहन रास न आया तो कभी माँजी कह दिया करती थी- बेटा, सिर ढक लो। बहू को यह टोकाटोकी पसन्द न आई और बहू ने तब यह फैसला कर लिया कि वह अपनी सास से अलग हो जाएगी। ___बहू ने अपने पति से कहा- मैं अब किसी भी हालत में इस घर में नहीं रहूंगी। आप या तो माँजी को अलग करो या मुझे। बेटे ने पत्नी को समझाने की कोशिश की कि- कुछ तो सोचो मेरी माँ ने मेरे लिए कितनी कुर्बानियाँ दी हैं, कितनी कठिनाइयों से मुझे पाला-पोसा और डॉक्टर बनाया है। आज मेरी जो भी हैसियत है उसमें मेरी माँ का ही हाथ है, पर बहू न मानी। बेटे को आख़िर बहू के आगे झुकना पड़ा, बीवी का गुलाम जो ठहरा। माँ को 'अपना घर' में पहुँचाया गया। बहू भी साथ में छोड़ने आई। बेटे ने माँ से कहा- माँ, तुम यहीं वृद्धाश्रम में रहो। यहां और भी बूढ़े लोग हैं। यहां तुम्हारा मन भी लग जाएगा। मैं जब-तब आता रहूंगा। तुम्हें कोई तकलीफ़ न हो, इसलिए मैं तुम्हें पाँच सौ रुपए हर महिने भिजवाता रहूँगा। ___ माँ ने अपना घर' को देखा। सोचने लगी कि जिस घर में पैदा हुई थी वह भी अपना न बन पाया। जिस बेटे को पढ़ा-लिखाकर तैयार किया, वह भी अपना बेटा न रह पाया। जिस बहू को इतनी मनौतियाँ करके लाई, वह भी अपनी बहू नहीं बन पाई। अब तो यहाँ जो अन्तिम शरण मिली है यही मेरा अपना घर हो जाए। माँ ने वृद्धाश्रम को देखा, फिर बेटे को एक नज़र देखा और कहा- ठीक है बेटा, जिसमें तुम लोगों को सुख मिले, वैसा ही करो।
बुढ़िया वृद्धाश्रम में रहने लगी। हर महिने पांच सौ रुपए आते रहे। बेटा छ: महिने में एक बार मिलने के लिए आ जाता तो कभी-कभार बहुरानी लोक-लाजवश वहां चली जाती। इस तरह कोई ढाई वर्ष बीत गए।
एक दिन वृद्धाश्रम के संचालक का बेटे के पास फोन आया- डॉक्टर साहब, आपकी माँ नाजुक हालत में है। आप तत्काल यहाँ पहुँच जाइए। आपकी माँ जाने से पहले आपसे मिलना चाहती है।
बेटे ने कहा- मेरे पास कुछ मरीज हैं । बस, उन्हें निपटा कर आता हूँ। उसी माँ की बेटी अमेरिका में रहती थी, उसको भी सूचना मिली। वह तो अगले दिन पहुँच गई। अगले दिन बेटा अपनी पत्नी और अपने दो बच्चों को साथ लेकर वृद्धाश्रम में पहुँचा। देखा कि वहां पर पूरा गमगीन माहौल है। 68
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