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जीवन में ऐसी कोई होनी होनी थी कि अचानक उन ईंट के टुकड़ों में से एक टुकड़ा खिसक गया और कढ़ाई में रखी हुई खीर बाहर छलक पड़ी। तुम पास ही लेटे हुए थे। वह खीर सीधी तुम्हारी छाती पर आकर गिरी।
मैं माँ के यह कहते ही चौंक पड़ा। माँ ने कहा-बेटा तुम्हारे पूरे हाथ, तुम्हारा पेट, तुम्हारी छाती जल गई। तत्काल तुम्हें अस्पताल ले जाया गया। उस समय हम जहाँ रहते थे वहाँ इतनी अच्छी चिकित्सा-व्यवस्था नहीं थी कि जिससे उचित उपचार मिल सके। साध्वी माँ ने कहा- बेटा, उस समय मैंने दो साल तक तुम्हें अपने हाथों में रखा। डॉक्टर ने कह दिया था कि अगर बच्चे का एक भी फफोला फूट गया तो ज़िन्दगी भर के लिये दाग रह जाएंगे। बेटा, उस दौरान मैं सो नहीं पाई, ढंग से खा नहीं पाई। लम्बे अर्से तक केवल तुम्हें ही सहेजती रही। हरदम यही ख्याल रहता था कि मेरे बेटे की छाती पर कहीं दाग न रह जाए। बेटा, फिर भी कुछ फफोले फूट ही गए। तुम्हारी छाती और पेट पर छोटे-छोटे दाग रह ही गए हैं। अगर हो सके तो बेटा उन दागों के लिए मुझे माफ करना।
ओ माँ, तेरी भी क्या महानता है कि तू बेटे को बेदाग़ रखने के लिए इस तरह खुद को कुर्बान करती रही।
ओ माँ, ओ माँ, तू कितनी सुंदर है, तू कितनी शीतल है, तू प्यारी-प्यारी है, ओ माँ, ओ माँ...। ये जो दुनिया है, जीवन है कांटों का तु फुलवारी है, ओ माँ, ओ माँ .... । दुःखने लगी माँ ये तेरी अँखियाँ, मेरे लिए जागी है तू, सारी-सारी रतियाँ। मेरी निंदिया पे, तेरी निंदिया है, तू बलिहारी है, ओ माँ, ओ माँ...। अपना नहीं तुझे सुख-दुख कोई, मैं मुस्काया, तू मुस्काई, मैं रोया, तू रोई, मेरे हंसने से, मेरे रोने से, तू बहलाती है, ओ माँ, ओ माँ...।
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