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माँ विष्णु भी है, माँ महेश भी है। ब्रह्मा जन्म देते हैं, विष्णु पालन करते हैं और महेश उद्धार करते हैं। माँ भी जन्म देती है, पालन करती है और बेहतर संस्कार देकर जीवन का उद्धार भी करती है, इसलिए प्यार से बोलो- माँ मेरी ब्रह्मा भी है, माँ मेरी विष्णु भी है, माँ मेरी महावीर और महादेव भी है।
बरसों पहले मेरी माँ ने वर्षीतप किया था अर्थात एक वर्ष के उपवास की तपस्या, एक दिन आहार लेना और दूसरे दिन निराहार रहना। अड़तालीस घंटों में से बारह घंटे आहार के लिए और शेष छत्तीस घंटे पूर्णत: उपवास में रहना। वर्षीतप की पूर्णाहुति से पूर्व हमारी साध्वी माँ ने हमें लिखा कि हालांकि आप लोग मुझसे बहुत दूर हैं और इतनी दूर आना आपके लिए दुष्कर, कष्टदायी यात्रा होगी। पर रह-रहकर मेरे भीतर एक ही भाव उठता है कि मैं अपने इस लम्बे तप की पूर्णाहुति अपने संतपुत्रों के हाथों से करूँ। __हमने अपनी सीधी-सरल माँ के ख़त को दो-तीन बार पढ़ा। अपने बचपन को याद किया। हमने उसी समय फैसला कर लिया कि हम अपनी माँ की भावनाओं को पूरा करेंगे। हमने अपने पूर्व निर्धारित सारे कार्यक्रम कैंसल कर दिए। तब हम लोग एक हजार किलोमीटर की पदयात्रा कर अपनी साध्वी माँ के पास पहुँचे और उन्हें अपने हाथों से वर्षीतप का पारणा करवाया। माताजी महाराज को हमारे आने से बेहद प्रसन्नता थी और हमें उनकी भावना को पूर्ण करने की प्रसन्नता थी। हम सभी आनन्दित और भावविह्वल थे। इस कार्यक्रम में हमारे साथ शेरे हिन्द दारासिंह जी भी शामिल हुए।
माँ के तप की पूर्णाहुति के करीब एक सप्ताह बाद मैं अपनी माँ के पास अकेला बैठा था। मैंने माँ से अपना बचपन जानना चाहा। मैंने पूछा- साध्वी माँ, मुझे बताओ मेरा वह बचपन, वे बिफिक्री के दिन कैसे बीते? ___माँ को जितना जो याद आता गया वे सुनाती रहीं। उन्होंने तो कई घटनाएँ सुनाईं, उन्हीं में से एक घटना है। माँ ने बताना शुरू किया, यह घटना तब की है जब तू डेढ़ वर्ष का था। हम सब लोग ननिहाल में थे, कोई विशेष महत्त्व का दिन था। इस पर ननिहाल वालों ने अपनी सारी बाई-बेटियों को बुलाया था।
खीर पक रही थी। रसोइया खीर बनाने में लगा था। भट्ठी पर कड़ाही के नीचे चार छोटे-छोटे ईंट के टुकड़े रखे हुए थे। रसोईया जोर-जोर से खीर हिला रहा था ताकि खीर पैंदे में चिपक न जाए। कुदरत का संयोग। तुम्हारे 64
घर को कैसे स्वर्ग बनाएं-4
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