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धोक लगाता है तो इससे माँ-बाप का नहीं, बेटे का गौरव बढ़ता है। यदि लाहोटी जी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधिपति होने की शपथ लेकर सबसे पहले कोर्ट में माँ के चरण छुए तो इससे माँ का नहीं वरन बेटे का गौरव बढ़ा कि इन्सान माँ के चरण छूकर दुनियाँ को यह सन्देश दे रहा है कि आज मैं जो कुछ हूँ माँ की बदौलत हूँ।
जो सर माँ के आगे न झुक सका, वह ज़िन्दगी में कभी 'सर' न बन सकेगा। वह और किसी के आगे झुकने का अधिकारी नहीं हो सकता। जो माथा माँ के आगे न नमा, वह गुरुग्रन्थ साहब के आगे नमकर भी सच्चे अर्थ में कहाँ नम पाया! ___ माँ के दिन की शुरुआत चाहे 'नमो अरिहंताणं' से हो, चाहे 'ॐ अस्य श्रीराम रक्षा स्तोत्र' मन्त्र से हो, अथवा 'ला-इलाहे-इल्ललाहु' से हो या फिर चाहे 'ओ-गॉड' से हो, पर माँ के हृदय से दुआओं की सदा एक ही शीतल धारा बहती रहती है- हे मेरे प्रभु, मेरी सन्तान यशस्वी हो, चिरायु हो, वैभवशाली हो। वह अपनी ज़िन्दगी में कभी थके नहीं, रुके नहीं, चूके नहीं। किसी भी सुनहरे अवसर से वंचित न रह जाए। हे प्रभु, मेरे बच्चों को सही-सलामत रखना। मेरा बच्चा फले-फूले, दूधो नहाए पूतो फले।
___ माँ की हर प्रार्थना का सार संतान का हित होता है। जिसका कण-कण, रक्त की हर बूंद, हर रोम-रोम अपने संतानों के हित से जुड़े रहते हैं, उस माँ की तुलना में आखिर हम किसे रख सकते हैं।
उसको नहीं देखा हमने कभी, पर उसकी जरूरत क्या होगी? हे माँ, तेरी सूरत से अलग,
भगवान की सूरत क्या होगी? भगवान को अगर देखना है तो माँ में देखो। माँ तो भगवान की जीतीजागती तस्वीर है। जिसने माँ को पूजा उसने भगवान को पूजा। जिसने माँ को नज़रअंदाज़ किया उसकी सारी प्रार्थनाएँ और नमाज़ नज़रअंदाज हो गईं। हे कुदरत, तुमने माँ को न जाने कैसी शक्ति दे डाली है कि माँ केवल माँ नहीं है। माँ जीवन का ब्रह्मा है। जिस तरह ब्रह्मा में ब्रह्माण्ड और ब्रह्माण्ड में ब्रह्मा समाए हुए हैं, उसी तरह माँ में पुत्र और पुत्र में माँ समाई हुई है। माँ ब्रह्मा भी है,
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