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________________ और दूसरी गंगा वह माँ है जो देवलोक में रहते हुए भी हम बच्चों के लिए वहीं से दुआओं की गंगाएँ बहाया करती है । याद रखो, रहना है तो भाइयों के बीच रहो, भले ही परस्पर वैर ही क्यों न हो । बैठना हो तो हमेशा छाया में बैठो फिर चाहे वह कैर ही क्यों न हो ? जब भी खाना हो तो माँ के हाथ से खाओ, फिर चाहे वह ज़हर ही क्यों न हो ? कम से कम यह तो सुकून रहेगा कि मुझे ज़हर भी उसने दिया है जिसने मुझे जन्म दिया था । अरे, माँ के हाथ से तो ज़हर भी अमृत बन जाता है। योगियों के योग की भी मातृ - सत्ता के आगे कोई बिसात नहीं है। हम साधु- - साध्वियों के, संत- महन्तों के, सिद्ध अरिहन्तों के कितने भी गुण क्यों न बखान लिए जाएँ पर माँ की महिमा को किसी से कम नहीं किया जा सकता। यह माँ ही है जो राम, कृष्ण, महावीर और बुद्ध को जन्म देने का सामर्थ्य रखती है। यदि दुनियाँ में इस बात का सर्वेक्षण करवाया जाए कि दुनियाँ का सबसे प्यारा शब्द कौनसा है ? तो जवाब होगा - माँ । यह सच है कि राम महान् हो सकते हैं, पर जन्म देनेवाली माँ कौशल्या से बड़े नहीं हो सकते । गणेश प्रथम पूजनीय और कार्तिकेय ज्ञान के दाता हो सकते हैं पर अपनी माँ पार्वती से वे दोनों ही बड़े नहीं हो सकते । चन्द्रप्रभ ने जिस धर्म में संन्यास ग्रहण किया है, उस धर्म की व्यवस्था है कि साध्वी कितनी भी बड़ी क्यों न हो वह साधु-संत से छोटी ही होती है, पर मैं श्रद्धापूर्वक कहना चाहूंगा कि मुझे इस बात का गौरव है कि मैं ऐसे माता-पिता की संतान हूँ जो स्वयं भी संत हैं और जिन्होंने मुझे भी विरासत में संत जीवन ही प्रदान किया है । मेरी माँ भले ही साध्वीजीवन में हो, पर मैं उन्हें सदा अपने पंचांग नमन समर्पित करता हूं । माँ की सेवा को महावीर और महादेव की सेवा मानता हूँ । मेरे लिए पहला मंदिर माँ है और दूसरा मंदिर महावीर और महादेव हैं। जो व्यक्ति इस बात को अपने जीवन में समझ सकेगा वह अपने जीवन में माँ-बाप के प्रति रहने वाले फ़र्ज़ अदा करने में सफल हो सकेगा । यही कारण है कि भले ही प्रकृति ने मुझे संत या गुरु क्यों न बना दिया हो पर मैं आज भी हजारों की भीड़ में भी माँ सामने आती दिख जाए तो बग़ैर किसी संकोच के हजारों लोगों के बीच भी अपना माथा माँ के सामने जाकर झुकाता हूँ। जो व्यक्ति अपनी माता या अपने पिता को भरी पब्लिक के बीच 62 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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