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प्रकृति यह अधिकार पुरुषों को दे दे कि तुम्हें नौ महिने तक अपनी संतान को पेट में रखकर, फिर उसे पैदा करना होगा तो दुनियां के 90 प्रतिशत पुरुष संतान को जन्म देना स्वीकार ही नहीं करेंगे।
सचमुच माँ, यह तेरी ही ताक़त है कि तू इस संसार को जन्म देती है। हमारा पालन करती है। हमें अपने पांवों पर खड़ा करती है । हमें बेहतर संस्कार देती है। निश्चय ही किसी देश की सरकार को चलाना आसान हो सकता है पर किसी संतान को श्रेष्ठ संस्कार और शिक्षा देकर उसे बेहतर इंसान बनाना सरकार चलाने से भी ज़्यादा कठिन काम है । क्या आप इस महत्व को समझ सकते हैं? भले ही कोई कहे इस संसार की रचना करनेवाला कोई ईश्वर या खुदा है, पर खुली आँखों से अगर सच को कहा जाए तो इस खूबसूरत दुनियाँ
और दुनियाँ की हर रचना को बनाने वाली माँ है । भले ही माँ का निर्माण ईश्वर ने किया होगा, पर संसार का निर्माण तो माँ ने किया है। ईश्वर को जबजब भी अपने अपने आपको व्यक्त करना होता है तब-तब वह माँ के रूप में जन्म लेता है । जब कभी ईश्वर को इस दुनियाँ का सृजन करना होता है तब वह माँ के हृदय में उतरता है और माँ की कोमल कोख़ का स्पर्श करते हुए इस संसार का सृजन किया करता है ।
हममें से कोई भी व्यक्ति माँ के ऋण को नहीं उतार सकता। इस गर्भपात के युग में भी माँ ने हमें जन्म दिया है। क्या उनका यह अहसान भी कम है याद कीजिए अपने बचपन को । हमें नज़र न लग जाए, इसलिए माँ हमारे माथे पर काजल की काली बिंदी लगाती थी । क्या हममें से कोई भी व्यक्ति उन बिंदियों का ऋण उतार पाएगा? हमारे पाँवों में पैंजनियाँ बाँधी जाती थीं और हम ठुमक ठुमक कर चलते थे। क्या हम उन पैंजनियों का ऋण उतार पाएँगे ? याद करो कि आपने अपने नन्हे नन्हे पैरों से अपनी माँ को जब-तब कितनी लाते मारी थीं। माँ फिर भी हमारे गालों को प्यार से सहलाती रहती । क्या हम उस प्यार का ऋण उतार पाएंगे। बच्चे लोग घर में सामान को एक जगह नहीं रहने देते । हम अपने बचपने स्वभाव के कारण माँ के सजाए हुए सामानों को भी बिखेर देते थे। माँ हमें इस पर एक मीठी डांट ज़रूर देती थी पर फिर खुद ही सामान सजा देती। क्या हम उन सामानों को समेटने का ऋण चुका पाएँगे ? जब हम बीमार पड़ जाते तो माँ माथे पर राई की पोटली रखा करती, ताकि हम
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