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में माँ या मदर से ज्यादा प्यारा शब्द और कोई नहीं है। माँ शब्द तो बीज की तरह छोटा है, और बरगद की तरह विशाल। माँ अपने आप में संसार का सम्पूर्ण शास्त्र है जिसमें दुनियाँ भर के सारे शास्त्र और उनका सत्य आकर समाहित हो जाता है। माँ तो अपने आप में मजहबों का मजहब है कि जिसमें दुनियां भर के सारे सारे पंथ और परम्पराएँ आकर सुख और सुकून पाया करती हैं। __माँ तो ममता का महाकाव्य है। माँ से ही पहली तुतलाती बोली शुरू होती है और माँ ही पीड़ा का पहला अल्फाज़ होता है। वह कैसी ज़बान जिस पर माँ की चासनी न लगी हो, वह कैसी किताब जिसमें माँ शब्द का उपयोग न हुआ हो, वह कैसी पीड़ा जिसकी गहराई से 'ओ माँ' न निकला हो। सच तो यह है कि माँ से ही जीवन की शुरूआत है। माँ ही जीवन के हर दुःख दर्द का पड़ाव है और माँ ही अन्तिम शरण स्थली है। जब दुनियां में कोई कहीं भी पनाह न पाए तब धरती पर एक अकेली माँ ही उसे शरण देती है। अपने राह भूले थके हारे बच्चे को अपनी कोमल अंगुलियों के स्पर्श से उसकी थकान को दूर करने वाली पहली और आखिरी शरण माँ ही होती है।
'माँ' राहत की सांस है। माँ तो अपने आप में जीवन का महाव्रत है। योगी लोग तो कोई एक व्रत या कोई एक अनुष्ठान करते होंगे पर माँ का तो सम्पूर्ण जीवन ही योगों का योग, अनुष्ठानों का अनुष्ठान और पूजनों का महापूजन
__माँ अपने आप में एक अनोखा व्रत है। जीवन में किसी के लिए भी एकादशी के व्रत को ग्यारह साल तक करना आसान है, संवत्सरी पर्व पर तीन दिन के उपवास करने सरल हैं, चातुर्मास के दरम्यान एक महिने का उपवास करके मासक्षमण करना सहज है, पर किसी के द्वारा भी 'माँ' होना और माँ के दायित्वों को निभाना उन समस्त व्रतों, उपवासों व मासक्षमण करने से भी ज्यादा दुष्कर तप है। माँ की ममता, उसके त्याग, उसके अहसान, अपने आप में एक महातप और कुर्बानी की दास्तान है।
___ माँ तो हमारे घर के कुमकुम की रंगोली है। माँ तो हर रोज सूर्य भगवान को दिया जाने वाला आस्था का अर्घ्य है। यह माँ ही है जो कि धैर्य और शान्ति रखने वाले चन्द्रमा का कार्य करती है। सभी देवी-देवताओं के स्वतंत्र 54
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