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________________ अपनी माँ के सामने जा सके। आखिर कोई भी अपना कलुषित चेहरा लेकर अपने माता-पिता के सामने नहीं जाना चाहेगा। लड़की मन-ही-मन सोच ही रही थी कि माँ सुबह पाँच बजे जगती है, मैं घर की चौखट के पास छिपकर बैठ जाती हूँ और जैसे ही माँ घर से बाहर आएगी तो मैं दूर से ही उसके दर्शन कर लूंगी और यहां से वापस रवाना हो जाऊँगी। लड़की मध्य रात्रि के बाद गली में पहुँची थी। गली में जैसे ही प्रवेश किया तो घर पर नजर पड़ते ही लड़की चौंक पड़ी। घर का दरवाजा खुला हुआ था। लड़की को कुछ अनहोनी का अन्देशा हआ। उसने सोचा कि आखिर रात के एक बजे दरवाजा खुला क्यों है? कहीं मेरी माँ संकट में तो नहीं है? कहीं कोई चोर-उचक्के तो मेरे घर में तो नहीं घुस गए? अपनी माँ को सचेत करने की भावना से उसने चिल्लाकर कहा–'माँ!' तभी अन्दर से आवाज आई- 'बेटा, आख़िर तुम आ गई।' माँ अन्दर से चिराग लेकर बाहर आई। उसने कहा- बेटा, मुझे पूरा विश्वास था कि तुम एक-न-एक दिन जरूर लौटोगी। जो दूर से ही माँ को देखना चाह रही थी, माँ को अपनी आँखों के सामने देखकर वह अपना धीरज न रख पाई। दौड़कर अपनी माँ के आँचल में अपने आपको छिपाने लगी। दोनों की आँखों से आँसू टपक रहे थे। लड़की ने पूछा'माँ, रात को एक बजे घर के दरवाजे खुले होने का रहस्य क्या है ?' माँ ने कहा- 'बेटा, मुझे पूरा-पूरा यक़ीन था कि एक-न-एक दिन तुम लौटकर घर ज़रूर आओगी। जिस दिन से तुम गई हो उस दिन से आज तक ये घर के दरवाजे बन्द नहीं हुए हैं ताकि जब भी तुम घर लौटकर आओ तो इन खुले दरवाजों को देखकर तुम्हें यह अहसास हो कि तुम्हारा इस घर में सदा स्वागत है। हर पल तुम्हारी प्रतीक्षा है। ___ बेटी ने कहा 'माँ, तुमने इतनी बड़ी बात कही दी, किन्तु अब मैं तुम्हारा पवित्र प्रेम पाने के काबिल नहीं रही हूँ।' यह कहते हुए वह फफक पड़ी। माँ ने कहा-'बेटा, किसी माँ की सन्तान चाहे सन्मार्ग पर जाए या कुमार्ग पर, चाहे सन्तान के सौभाग्य का उदय हो या दुर्भाग्य का, माँ का आँचल तो अपने बच्चों के लिए हर समय बिछा रहता है। उसकी बांहें तो हरदम बच्चों को गले लगाने के लिए फैली रहती हैं।' . 'माँ' तो संसार का सबसे खूबसूरत शब्द है। दुनियाँ के सारे शब्द कोषों | 53 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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