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कीर्तिमान स्थापित कर सकता है । चिंगारी भले ही तुच्छ होती है, लेकिन वही दावानल का रूप भी धारण कर सकती है। छोटा घाव भी नासूर बन सकता है। बीज छोटा होता है लेकिन जमीन में उतर जाने पर वही विशाल वृक्ष बन जाता है। अणु और परमाणु जब विध्वंसक रूप अख्तियार कर लेते हैं तो हिरोशिमा और नागासाकी को ध्वस्त करने में सफल हो जाते हैं। शिवाजी ने मात्र 16वर्ष की आयु में अपनी ज़िंदगी का पहला किला फ़तह कर लिया था और अकबर ने मात्र 13 वर्ष की आयु में सम्राट् पद पा लिया था। बालक सचमुच तभी तक बालक है जब तक उसके भीतर कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा नहीं हो जाता। जज़्बा पैदा हो जाए तो याद रखो आग सबके भीतर छिपी है। बस उसे जगाने की ज़रूरत है ।
आपके भीतर जब तक कुछ कर पाने का हौंसला जाग्रत नहीं हो जाता तब तक आप पचपन के होकर भी बचपन में ही होते हैं। उम्र से कभी व्यक्ति का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। उसके कर्म, गुण, महानता, भीतरी विश्वास ही उसे आगे बढ़ाते हैं । आज के दौर में बालकों की बुद्धि इतनी प्रखर, तर्कयुक्त, वैज्ञानिक और इतनी विकासशील है कि पिछले पच्चीस सौ वर्षों में जितना विकास हुआ होगा, उससे सौ गुना ज्यादा विकास वर्तमान पीढ़ी के पास है । आज बारह वर्ष का बच्चा भी आपको सलाह देने में समर्थ है। उसका मस्तिष्क कम्प्यूटराइज्ड है । उसे तो जन्म से ही ऐसा वातावरण मिल जाता है कि आपने जो चौदह वर्ष की आयु में जाना, वह उसे चार साल की आयु में ही जान लेता है। समय बदल गया है । हम अपनी वर्तमान पीढ़ी पर गौरव कर सकते हैं कि वह बदले हुए जमाने के साथ क़दम मिलाकर चलने में सक्षम है। आज की पीढ़ी ज़बर्दस्त प्रतिभाशाली है, वह नित - नवीन शिक्षा, समृद्धि और सफलता की ओर बढ़ रही है ।
हम जिस युग में पैदा हुए हैं हमारे लिए वही श्रेष्ठ है । वर्तमान में रहकर अतीत की दुहाई देने से काम न चलेगा। राम का समय महान् होगा, महावीर का समय श्रेष्ठ और बेहतर रहा होगा, पर हमारे लिए तो यही युग बेहतर है, जिस युग में हमारा जन्म हुआ है। कुछ दशकों पूर्व तक तो कन्याओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता था। सातवीं-आठवीं कक्षा तक पढ़ लीं तो बहुत हो गया, लेकिन आज कन्याएँ आकाश के क्षितिज छू रही हैं, हर क्षेत्र में पुरुषों की हम
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