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________________ क़दम होकर नए-नए कीर्तिमान रच रही हैं। विकास की तेज दौड़ में हर व्यक्ति सुख और समृद्धि की ओर बढ़ रहा है। विज्ञान ने बहुत तरक्क़ी की है और उसका प्रभाव हमें अपने रोज़मर्रा के जीवन में भी दिखाई देता है। पर मैं बच्चों को एक बात के लिए सावधान करना चाहूँगा माना कि धन-दौलत, सुख-साधन बहुत हो गए हैं लेकिन कुछ घट गया है तो वह है बच्चों के संस्कार, जीवन के सांस्कृतिक और मानवीय मूल्य। मकान तो बड़े होते जा रहे हैं लेकिन उनमें रहने वाले लोग बहुत छोटे हो गए हैं। बच्चों का वैज्ञानिक और भौतिक विकास तो खूब हुआ है पर पारिवारिक मूल्य क्षीण हो गए हैं। अगर किसी बच्चे को यह कहें कि सुबह उठकर अपने माता-पिता के पैर छुआ करो तो उसे ऐसा करते हुए शर्म आ जाएगी, झिझक लगेगी। अरे भाई, जो व्यक्ति अपने माँ-बाप को प्रणाम करने में संकोच करेगा, उसे फिर अपनी बीवी के ही पाँव छूने पड़ेंगे। जीवन में सबसे बड़ी भूमिका ही माता-पिता की है। वे ही सर्जक हैं, वे ही पालनहार हैं और वे ही उद्धारक हैं। उसको नहीं देखा हमने कभी पर उसकी ज़रूरत क्या होगी? हे मां, तेरी सूरत से अलग, भगवान की सूरत क्या होगी? धरती का भगवान तो घर-घर में है, हमारे अपने ही माता-पिता के रूप में हैं। कृपया अपने माता-पिता की इज्जत कीजिए, श्रवणकुमार को सदा अपनी आँखों में रखिए और अपने कर्त्तव्य पूरे कीजिए। ज़्यादा न सही, पर उतने वर्ष तो माता-पिता के ज़रूर काम आ जाएँ, जितने वर्ष वे हमारे काम आए। पहले घरों के बाहर लिखा रहता था, 'अतिथि देवो भव।' बाद में वक़्त बदला। लोग लिखने लगे-'स्वागतम्', 'वेलकम' और अब लिखा मिलता है- 'कुत्ते से सावधान।' हमारे संस्कारों को यह क्या हो गया है ? एक पिता ने सोचा कि मुझे यह जान लेना चाहिए कि मेरा बेटा बड़ा होकर क्या बनेगा? उसने चार साधन अपनाए। एक तरफ शराब की प्याली रखी, दूसरी तरफ कलम रखी, तीसरी ओर रामायण-गीता रखी और चौथी 40 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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