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प्रेम से रहने का पाठ पढ़ाया है। हमने ईंट-पत्थर के मंदिर तो कम बनाए हैं, पर घर-घर को मंदिर अवश्य बनाया है, हज़ारों घरों को मंदिर-सा सुन्दर बनाया है। मेरा मानना है जो समाज को जोड़े उसी को संत कहते हैं और जो इंसानों को आपस में तोड़े मानवता के मंदिर में वही शैतान होता है। भाई! हम लोग संत बनें, शैतान नहीं।
शैतान विध्वंश करता है, संत सृजन करता है। मैं तो प्रेम का पाठ पढ़ाता हूँ जहाँ भी रहता हूँ उस हर वातावरण में प्रेम का रस घोलता हूँ। हमारी बातें लोगों के जेहन में इसलिए जल्दी से उतर जाती हैं क्योंकि उनमें प्रेम, शांति और भाईचारे की मिठास होती है। मैं न तो कोई बहुत बड़ा विद्वान हूँ और न ही कोई बहुत बड़ा पंडित। मैं तो केवल प्रेम का पाठ पढ़ाता हूँ। आप लोगों से प्रेम करता हूँ, सो एक कल्याण-मित्र बनकर आपको प्रेमपूर्वक जीने का पाठ पढ़ा देता हूँ। मैं तो कहूँगा कि आप केवल अपने परिजनों और गैर इंसानों से ही प्रेम-मोहब्बत न करें, बल्कि पशु-पक्षियों से भी प्रकृति की कला कृतियों से भी प्रेम करें, सूरज-चाँद और सितारों से प्रेम करें। अरे, मैं तो कहूँगा कि अपने आलोचकों और दुश्मनों से भी प्रेम करें। जिस दिन भी हम अपने शत्रु से भी प्रेम करने लग जाएँगे तो समझ लेना कि आपका प्रेम साधारण प्रेम न रहा, उसकी अस्मिता असाधारण हो गई। आप डिवाईन लव के मालिक हो गए।
हम सोचें ऐसी बातें जिन बातों में हो दम। दुश्मन से भी हम प्यार करें, दुश्मनी हो जिससे कम॥ जिस घर में तूने जनम लिया, वो मंदिर है तेरा। प्रभु की मूरत हैं मात-पिता, उनसे न जुदा हों हम॥ भाई-भाई की ताक़त है, भाई से कैसा बैर, माफ़ी माँगें और गले मिलें, इसमें क्यों रखें शरम॥ महाभारत हमने खूब लड़ा, और खूब लड़े हम-तुम। वो राम-लखन का प्रेम त्याग, क्या अपना नहीं धरम॥ दुनिया में ऐसा कौन भला, जो दूध से धुला हुआ। कमियाँ तो हर इंसान में, फिर क्यों न रखें संयम॥ हमसे सबको सम्मान मिले, सबको ही बाँटें प्यार। बोलें तो पहले हम तौले, मिश्री घोलें हरदम॥
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