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वैसे भी प्रभु को ज्ञान से नहीं, प्रेम से पाया जाता है। भक्ति प्रेम का ही निर्मल रूप है। मैं ज्ञान का प्रकाश फैलाने का समर्थक हूँ। बगैर शिक्षा और ज्ञान का व्यक्ति नेत्रहीन इंसान की तरह होता है, पर बगैर प्रेम और भावना के ज्ञान नीरस और कंटिला झाड़-झंखाड़ भर होता है। ज्ञान पहला चरण है और प्रेम दूसरा चरण। प्रेम ज्ञान को अमृत बनाता है, प्रेम जीवन को सरस बनाता है। प्रेम मरते हुए इंसान में भी प्राण फूंक देता है। प्रेम उपचार का आधार बन जाता है। एक मरीज को अगर प्रेम का सहारा मिल जाए तो रोग से लडने की उसकी ताक़त दुगुनी हो जाती है। प्रेम के पास आते ही मरीज़ को एक संबल मिल जाता है। उसे लगता है कि कोई है जो उसके दुःख-दर्द को बाँट सकता है, उसकी पीड़ा को हल्का कर सकता है। जिससे व्यक्ति प्रेम करता है अगर वह पास होता है तो ऐसे लगता है जैसे ईश्वर उसके पास है।
सचमुच प्रेम रोगों का इलाज करता है। जो प्रेम देता है, प्रेम उसका भी इलाज करता है और जो प्रेम पाता है प्रेम उसका भी उपचार करता है।
एक व्यक्ति कैंसर से पीड़ित था। उसे कैंसर की बीमारी हो गई। यह सुनकर वह मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो गया। वह डिप्रेशन में चला गया। उस डिप्रेशन के दबाव के कारण उसके दिमाग की कोई सूक्ष्म नाड़ी प्रभावित हो गई और उसे लकवा मार गया। लकवे के कारण उसका सारा शरीर सुन्न हो गया। एक दिन उस व्यक्ति का बेटा मेरे पास आया। अपने पिता के इलाज़ के सिलसिले में । उसने मुझसे समाधान चाहा। मैंने उसे प्रेम और प्रार्थना का रास्ता सुझाया। मेरी बात, न जाने क्यों, उसके गले उतर गई। वह रोज सुबह अपने पिता के पलंग के पास जाता, हाथ जोड़ता,आँखें बंद करता और मन ही मन ईश्वर से अपने पिता के स्वस्थ होने की प्रार्थना किया करता। प्रार्थना पूरी होने पर वह अपने पिता को देखकर मुस्कुराता और अपने लेटे हुए पिता के गले लगता और मुँह से कहता, आई लव यू पापा। चूँकि पिता को लकवा था सो वे वापस जवाब में कुछ बोल नहीं पाते। वे बोलना चाहते थे, पर उनके गले से आवाज़ नहीं निकल पाती। वे भावुक हो उठते, उनका गला भर आता। उनकी आँखों से आँसू टपक पड़ते, पर बेटे ने तो मानो यह क्रम ही बना लिया। रोज सुबह पापा के पास जाना, ईश्वर से प्रार्थना करना और पापा के गले लगकर उन्हें 'आई लव यू' कहना। 26/
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