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________________ लिए ऑफिस से अवकाश ले लो। सप्ताह भर का आनन्द पाने के लिए किसी हिल स्टेशन पर मौज मस्ती कर आओ। एक महिने के आनन्द के लिए किसी से शादी रचा लो। अगर पूरे वर्ष भर आनन्द-सुकून पाना चाहते हो तो किसी अमीर आदमी के गोद चले जाओ, पर यदि जीवन भर आनन्दित रहना चाहते हो तो अपने काम से प्यार करो। प्यार से किया गया काम कामधेनु और कल्पवृक्ष बन जाता है, वहीं बेमन से किया गया काम बोझ और बन्धन की बेड़ी बन जाता है। __मैं प्रेम से जीता हूँ और जिस कार्य को भी करता हूँ बड़े प्रेम और आनन्द भाव के साथ करता हूँ। इसलिए मेरे लिए न तो होली साल में एक बार आती है और न दिवाली। मैं जैसे ही आँखें खोलता हूँ मेरे सामने दिवाली के दीप जल जाते हैं और जैसे ही किसी से मिलता हूँ होली के रंग उभर आते हैं। मेरे द्वारा किया गया हर काम गीता का कर्मयोग और ईश्वर का यज्ञ-हवन बन जाता है। क्योंकि मैं जो कुछ करता हूँ वह बड़े प्रेम से करता हूँ, अकर्ता-भाव से करता हूँ। मुझे लगता है जीवन ईश्वर का प्रसाद है और जीवन में किया गया हर कार्य प्रभु की पूजा है। जितने पवित्र भाव से आप ईश्वर की पूजा करते हैं, मैं उतने ही पवित्र भाव से अपना कर्म करता हूँ। आप ईश्वर को केवल मंदिर, चर्च और गुरुद्वारा में देखते हैं, मैं ईश्वर, अल्लाह और अरिहन्त को हर ओर देखता हूँ। उनकी सर्व व्यापकता का अहसास मुझे हर तरफ होता है। पहचान सके तो पहचान, कण-कण में छिपा है भगवान। अगर आपके पास दृष्टि है तो सर्वत्र उसकी सृष्टि है। आपके लिए पुरी और पालीतना में, हरिद्वार और बद्रीनाथ में ही उसका तीर्थ है, मुझे तो सारी पृथ्वी ही उसका तीर्थ नज़र आता है। जैसे सूरज, चाँद, सितारों का नूर पूरी पृथ्वी से नज़र आता है, उन्हें चाहे जिस कोने से देख लो, वैसे ही उस महान् दिव्यशक्ति का तेज भी, उसका अस्तित्व भी पृथ्वी के हर कोने से नज़र आएगा। जिनके पास केवल बुद्धि के तर्क हैं उन्हें ये बात जल्दी से समझ नहीं आएगी, पर जिनके पास प्रेम भरा हृदय है वे तो सर्वत्र उसका अहसास कर लेते हैं, उसका आनन्द ले लेते हैं। आँखें खोलो तो बाहर उसकी व्यापकता नज़र आती है और आँखें बंद करो वह अंतरघट में समाहित लगता है। | 25 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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