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अभिव्यक्ति को माध्यम बनाना पड़ता है, पर न जाने प्रकृति ने प्रेम में ऐसी कौन-सी मिठास घोल दी है कि प्रेम की गहराई में भाषा, शब्द और अभिव्यक्ति को माध्यम बनाना पड़ता है, पर न जाने प्रकृति ने प्रेम में ऐसी कौन-सी मिठास घोल दी है कि प्रेम की गहराई में भाषा, शब्द और अभिव्यक्ति तीनों ही मौन हो जाते हैं । हृदय में जब प्रेम का सागर उमड़ता है तो दो प्रेमी आपस में मौन हो जाते हैं और केवल प्रेम में डूबना और खो जाना चाहते हैं। प्रेम की यही सबसे बड़ी खासियत है।
एक दार्शनिक अपने दर्शन के अंदाज़ में बोलता है। एक तत्त्व-चिंतक अपने चिंतन को परिभाषित करता है। एक वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक मन की गुत्थियाँ सुलझाने में उलझ जाते हैं, पर प्रेमी हृदय सारी दुनिया से बेखबर होकर प्रेम के भाव में बिक जाता है। कभी भरत ने राम से प्रेम किया था, तो भरत अपने प्रेम का मोल लिए बगैर राम के चरणों में समर्पित हो गया और उनके खड़ाऊ को राज-सिंहासन का मालिक बना दिया। कभी कृष्ण ने सुदामा से प्रेम किया तो सुदामा के चावल के सत्तु के बदले राजमहल का निर्माण करवा दिया। कभी मीरां ने कृष्ण से प्रेम किया तो राजमहल के सुख छोड़कर वृंदावन की रसिक बन गई। मानो मीरां कृष्ण के हाथों बिक और कष्ण मीरां के हाथों बिक गए हों। सो कहने लगी-माई री मैंने गोविन्द लीन्हों मोल। कोई कहे सस्तो कोई कहे मोहंगो, लियो रे तराजू में तौल। माई री मैंने गोविन्द लीन्हों मोल।
प्रेम तो जीवन में रस घोलता है। यह नीरस को भी सरस बना देता है। जीवन के जिस किसी क्षेत्र में प्रेम का रस घुल जाए तो उस क्षेत्र में बढ़ने का उसे जीने का आनन्द ही अनेरा हो जाता है। काम वही किया जाना चाहिए जिस काम को करने में आनन्द आता हो। बगैर आनन्द के किया गया व्यापार, सेवा, धर्म-कर्म, योग-साधना बहुत जल्दी बोझ लगने लग जाते हैं। आदमी ऊब जाता है। जिस काम का परिणाम आनन्ददायी हो उस काम को लम्बे समय तक सहजतया किया जा सकता है। आनन्द तभी आएगा जब किए जाने वाले कार्य के प्रति प्रेम हो, रस हो। ___मैंने कभी कहा था कि अगर तुम एक घंटा के लिए आनन्दित रहना चाहते हो तो जहाँ बैठे हो वहीं झपकी ले लो। एक दिन का आनन्द पाने के 24
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