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इस तरह करीब तीन महिने बीत गए। आज बेटे का जन्मदिन था। घर में खुशियों का माहौल था, पर बेटा अपनी रोज की दिनचर्या के मुताबिक अपने पिता के पास गया, प्रार्थना की और गले लगकर प्यार भरे अंदाज़ में कहा'पापा! आई लव यू', 'आई लव यू', 'आई लव यू पापा' । 'पता नहीं प्रेम और प्रार्थना का क्या चमत्कार हुआ। बेटे ने देखा कि पापा का जो हाथ लकवे के कारण सुन्न हो गया था। आज उसमें न जाने कौन से प्राण का संचार हो उठा कि पापा ने अपनी सारी ताक़त लगाकर पलंग पर निढाल पड़े अपने हाथ को ऊँचा उठाया, बेटे की पीठ और माथे पर रखा और आशीर्वाद दिया और टूटे फूटे स्वर में ही सही, पर पापा के मुँह से निकल पड़ा- बेटा ! आई लव यू, बेटा आई लव यू।
बेटा खुशी के मारे झूम उठा। उसे लगा कि उसके प्रेम और प्रार्थना का परिणाम उसे मिल गया। पापा के सुन्न हाथ में जान आ गई और रुंधे गले में आवाज़ लौट आई। उसे लगा कि ईश्वर ने उसे उसके हैप्पी बर्थ डे का सबसे अनमोल उपहार दे दिया।
प्रेम के साथ प्रार्थना और प्रार्थना के साथ प्रेम जुड़ जाए तो वह प्रेम परमात्मा का प्रसाद बन जाता है। मंदिर में जाकर पुजारी से चार मखाने खाना ईश्वर का प्रसाद नहीं है, वह तो केवल हमारी श्रद्धा की अभिव्यक्ति है। प्रभु से प्रेम करना, उनसे इकतार हो जाना, प्रभु की दिव्यता को अपने में साकार कर लेना ईश्वर का सच्चा प्रसाद है। अच्छा होगा हम प्रतिदिन 15 मिनट प्रार्थना करें और 15 मिनट अपने हृदय-क्षेत्र में ध्यान करें। हृदय में ध्यान धरने से जीवन में निर्मल प्रेम का उदय होता है। हृदय में स्वयं की सत्ता तो है ही, सारे ब्रह्मांड को भी हृदय में आमंत्रित कर लें, इससे आपका प्रेम व्यक्ति-विशेष तक सीमित नहीं रहेगा। आपका प्रेम विराट हो जाएगा, मन में रहने वाली वैरविरोध की जंजीरें स्वतः टूट जाएँगी।
प्रार्थना और हृदय पर ध्यान-ये दोनों मिलकर हमारे प्रेम को दिव्य बना देंगे। इससे स्वार्थ और क्षुद्र वृत्तियाँ बिखरेंगी। हम हृदय में, हृदयेश्वर से जुड़ेंगे। तब हमारा प्रेम मीरां के चूँघरूओं की छन-छनहाट देगा, तब हृदय से सूर के गीत फूटेंगे, पाँवों में चैतन्य महाप्रभु का नृत्य साकार करेगा। तब हमें यह सारी धरती, सारा ब्रह्मांड प्रेममय नज़र आएगा।
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