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________________ लेकिन जो इसके प्रति गंभीर है, जो इस रास्ते पर गंभीरता से चल पड़ता है वह अपनी शांति, मुक्ति और सच्चिदानंद स्वरूप की प्राप्ति का प्रयत्न अवश्य कर सकता है, वह सफल अवश्य हो सकता है। केवल दिल में चाहत चाहिए। आग तो दिल में है ही, केवल उसे जगाने की ज़रूरत है। इन्सान के सामने रास्ता स्पष्ट हो जाना चाहिए कि वह अपने जीवन में क्या लक्ष्य रखता है और इसे प्राप्त करने के लिए क्या प्रयास कर रहा है। अगर हमारे सामने रास्ता हो और लक्ष्य न हो तो हम उस रास्ते पर चल ही न पाएँगे। लक्ष्य हो और उसे प्राप्त करने का तरीका मालूम न हो तब भी हम लक्ष्य को उपलब्ध न कर पाएंगे। साधक के सामने वस्तु-स्थिति और परिस्थिति स्पष्ट हो जानी चाहिए । मीन की आँख की तरह अर्जुन के सामने स्पष्ट लक्ष्य था और उसने शर-संधान किया। ___भगवान बुद्ध मानव मात्र की मुक्ति का पैगाम दे रहे हैं। वे स्वयं भी मुक्त हो चुके हैं और प्राणीमात्र की मुक्ति का ही सपना देखते हैं, वे सबकी मुक्ति की ही मंगल कामना करते हैं। वे हमें बताते हैं कि इन्सान को किन चीजों से मुक्त होना है, वह किन चीजों से बँधा हुआ है। संसार में व्यक्ति मुख्य रूप से दो ही चीजों से बँधा है। पहला है- मोह और दूसरा है- अन्तरमन में चलने वाली काम वासना की वृत्ति । जब तक ये दो तत्त्व हैं तब तक हम संसार में हैं। इन दो तत्त्वों से ऊपर उठ जाएँ तो हम मोक्ष और निर्वाण की ओर हैं। जब तक हमारे मन में मुक्ति का भाव उत्पन्न नहीं होगा तब तक हम इस कीचड़ में से न निकल सकेंगे। संसार का रस-रंग, संसार का मोह, मानव शरीर के विकार हम पर इतने हावी हैं कि इन विकारों से निर्विकार होने का, मोह से निर्मोह या वीतमोह होने का मानस ही नहीं बनाते । हम इस बारे में सोचते भी नहीं हैं। हाँ, अगर कोई निर्णय कर ले, निश्चय कर ले तो वह निश्चित ही आगे-आगे बढ़ता जाएगा। श्री भगवान कहते हैं कि इन्सान भोगों में अंधा बना हुआ है। सारे धर्मशास्त्र यही कहते हैं कि प्रत्येक साधक के लिए शील और ब्रह्मचर्य अनिवार्य रूप से पालन करने योग्य होता है। लेकिन धर्मशास्त्र में लिख देने मात्र से क्या कोई साधक शीलवती या ब्रह्मचारी हो ही जाएगा ? सम्भव है संन्यास लेने से वह अपने तन को तो काबू में रख ले, पर मन में उठने वाली तरंगों, दूषित भावों को वह कैसे रोकेगा ? इनका परिष्कार कैसे करेगा ? ब्रह्मचर्य और शीलव्रत को धारण करना उन्हीं के लिए संभव होता है जो किसी गजराज की तरह बलवान 197 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003871
Book TitleVipashyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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