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या सजना-सँवरना छोड़ दें, बल्कि इनका उपयोग करते हुए सचेतनता बनी रहे, इनकी निरर्थकता का मान रहे । भोग-विलास में उलझा रहने वाला प्राणी, जिह्वा इन्द्रिय के स्वाद में लोलुप-लिप्त व्यक्ति इसके विलय के प्रति भी जाग्रत रहे । निवृत्ति के दौरान जो अशुचि है, क्योंकि खाया तब तो पवित्र था, अब आठ घंटे बाद अपवित्र कैसे हो गया। इसलिए वह चिंतन-मनन करते हुए भलीभाँति जाने- अहो ! इस काया में यह क्या है। मल-मूत्र, पीप-मवाद- इस शरीर में यही सब तो भरा पड़ा है।
जैनों के चौबीस तीर्थंकरों में एक तीर्थंकर हुए हैं, 'मल्लि'- यह महिला तीर्थंकर हैं। दुनिया में जितने भी पैगम्बर हुए, अवतार हुए, शायद उनमें से एकमात्र जैनों में इतनी हिम्मत आ सकी कि उन्होंने स्त्री को तीर्थंकर मानना स्वीकार कर लिया। अन्यथा यह तो पुरुष प्रधानता वाला देश है। मैं तो आज तक नहीं समझ पाया कि कल का संत और किसी साध्वी का अस्सी साल का संन्यास पर्याय है, फिर भी वह उस संत को प्रणाम करेगी। व्यक्तिगत तौर पर मैं इस व्यवस्था का हिमायती नहीं हूँ और मानता हूँ कि यह पुरुष प्रधानता वाली बात है। केवल इसलिए साध्वी साधु को प्रणाम करे कि वह पुरुष है, तो मैं मानूँगा कि यह व्यवस्था गलत है। फिर तो लिंग महत्त्वपूर्ण हो गया- स्त्रीलिंग, पुल्लिंग। फिर चरित्र कहाँ महत्त्वपूर्ण हुआ। इसलिए मैं तो साध्वियों को हाथ जोड़कर अभिवादन करता हूँ। मैं तो पूर्व प्रव्रजित व्यक्ति फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, उन्हें प्रणाम करना पसंद करता हूँ। आखिर व्यक्ति का मूल्य है, व्यक्तित्व का मूल्य है, गुणों का मूल्य है, उनके आचरण, चरित्र और गुणों का सम्मान है, फिर गुण चाहे छोटे का हो या बड़े का, आदरणीय है।
हाँ, तो अब मल्लि की बात पर आते हैं- कहते हैं कि छ:-छः राजकुमार एक साथ उनसे विवाह करने के लिए आतुर हो गए। नगर के बाहर तम्बू तन गए। सभी ने वहाँ अपना डेरा जमा लिया। नगर कोट के पटों-दरवाजों को घेर लिया। हर दरवाजे पर एक-एक राजकुमार ने अपनी सेना जमा ली। मल्लि के पिता ने सोचा कि वह इनसे कैसे मुकाबला करे- मौत सामने नजर आने लगी। किसे हराए। एक साथ छ: राज्य आक्रमण को तत्पर । मल्लि से सलाह ली गई। उसने कहा- पिताश्री आप चिन्ता न करें, मैं सम्हाल लूँगी। आप सबको कहलवा दीजिए कि एक माह बाद मुझसे मिलने आएँ । राजा ने कहा- ठीक है बेटा, पता नहीं तू क्या करना चाहती है। मल्लि ने कहा- पिताजी, आप एक
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