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बात ठोस अनभूति के आधार पर निर्णय करना कि यह जो उलझे हो, क्या वह ठीक है ? महावीर ने चार अनुप्रेक्षाएँ दीं- अनित्य, अशरण, एकत्व और अन्यत्व। अणिच्चं- सब कुछ यहाँ अनित्य है। सोचो अपने साथ क्या लाए
और क्या साथ ले जाओगे। गीता में भगवान कृष्ण भी यही कहते हैं। खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाना है, फिर क्यों इतनी मारामारी है। बुद्ध की तो शाश्वत अनुभूति है कि यहाँ सब कुछ अनित्य है, सब कुछ प्रतिपल बदल रहा है, महल खंडहर हो रहे हैं, अमीर गरीब हो रहे हैं। रावण जिसके मुकुट आकाश छुआ करते थे, वे ही धूल-धूसरित हो जाते हैं। यहाँ कुछ भी शाश्वत नहीं है, सब कुछ अनित्य, परिवर्तनशील है। बच्चा जवान होता है, जवान बूढ़ा होता है
और बूढ़ा मर जाता है- सब अनित्य । हम बच्चे पैदा करते हैं, पर बेटे को बहू ले जाती है और बेटी को जंवाई। शरीर एक दिन श्मशान चला जाता है, यानी सब कुछ, सारे सम्बन्ध अनित्य । आज जिसके घर दिवाली नज़र आती है, कल उसी के घर दीवाला निकल जाता है। रावण जिस शक्ति पर घमंड करता था, वक्त आने पर वही शक्ति उसे दगा दे जाती है। सभी कुछ अनित्य । सभी कुछ अशरण। अशरण यानी यहाँ कोई शरणभूत नहीं है। लगता है ये मेरा सहारा बनेंगे अथवा वे मेरा सहारा बनेंगे। पर जब तक हम-आप समर्थ हैं, तब तक एक-दूसरे का सहारा बने हुए हैं। जब हम असमर्थ हो जाएँगे, मृत्यु के द्वार पर खड़े होंगे, तब कौन हमारा सहारा बनेगा। कोई साथ न आनेवाला है, न जानेवाला है।
सनने वालों सनो ध्यान से. सारे आज गरीब अमीर। सबकी ही तस्वीर रहेगी,
नहीं रहेगा सदा शरीर। पीछे क्या बचेगा ? केवल तस्वीर । शरीर तो सबका नश्वर है । जब तक है, तब तक है, कब किसको लकवा मार जाए, कब किसको हार्ट-अटैक हो जाए, कब कौन लुढ़क जाए, कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। इसीलिए महावीर कहते हैं- 'अशरण'।
अनाथी मुनि की कहानी आपको याद होगी। राजा श्रेणिक अनाथी मुनि के पास जाकर कहता है- अहो ! मित्र, भरी जवानी में, तुम्हारा मुख-मंडल इतना सुन्दर है, फिर भी तुमने किस कारण से संन्यास ले लिया। मुनि ने कहा
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