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________________ साधना करनी नहीं पड़ती, साधना अपने-आप होने लगती है। इन्हें साधने से परिणाम अपने-आप आएगा, मुक्ति अपने-आप उपलब्ध होगी। जल्दबाजी से मुक्ति को नहीं पाया जा सकता, फूल अपने-आप खिलता है। जब ये पाँच बातें हमारे साथ रहेंगी तो भगवान ने जो यह ईर्यापथ पर्व' कहा, इसकी साधना धन्य और सार्थक हो जाएगी। जब हम आनापान-योग करें, तब इन पाँच बातों का बोध रखें । जब साधक चले तो उसे बोध रहे कि वह चल रहा है, ठहरने का बोध रहे, लेटने का, बैठने का बोध रहे। काया की ये चार गतिविधियाँ ही सचेतनतापूर्वक सम्पादित करना है। चलते हुए भी हम कैसे ध्यान करें, इसके लिए बुद्ध ने शब्द दिया 'विपश्यना चंक्रमण' । चंक्रमण का अर्थ है चलना । चलते हुए विपश्यना करना अर्थात् चलते समय हमारा पाँव जमीन पर रखा जा रहा है, उठाया जा रहा है, इसका बोध होता रहे। पाँव रखने और उठाने की क्रिया में अन्य किसी का हस्तक्षेप, निक्षेप नहीं हो, इसका होश बना रहे । चंक्रमण की विपश्यना में केवल चलने पर ध्यान हो, इधर-उधर की न सोचें, न बोलें, न देखें । यह विपश्यना भी हमारे लिए साधना होगी अर्थात् हँसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानम्' । प्रतिदिन की हर क्रिया ध्यान हो सकती है, बस ज़रूरत है, सचेतनता की। दो शब्दों को याद रखें. भलीभाँति और लगातार । जहाँ ये दो शब्द मिलते हैं, वहाँ साधक आतापी भी होता है, संप्रज्ञाशील भी होता है और सचेतनता को प्रखरता से साधा करता है। ___ हम काया की अनुपश्यना को समझते हुए इसे अपने जीवन में चरितार्थ करें, इसे जीने का अभ्यास करें, प्रयास करें, इसी शुभ-भावना के साथ। नमस्कार ! 81 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003871
Book TitleVipashyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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