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आसक्तियों को कैसे काटें
आसक्ति संसार है और अनासक्ति मुक्ति है। निर्वाण और मोक्ष का द्वार अनासक्ति के राजमार्ग से खुलता है। जबकि संसार का आधार प्राणिमात्र के मन में पलने वाली आसक्ति है । आसक्ति संसार का पथ है और अनासक्ति निर्वाण का। आसक्ति मूर्च्छा और मृत्यु की ओर ले जाती है, तो अनासक्ति आत्मजागरूकता और मुक्ति की ओर बढ़ाती है । जीवन में किसी को स्त्री के प्रति आसक्ति होती है, तो किसी को पुरुष के प्रति । कोई सन्तान या अपनी जमीनजायदाद के प्रति रागासक्त होता है, तो कोई धन, सम्पत्ति या पद-प्रतिष्ठा के प्रति लालायित रहता है। कई लोग छोटी-सी बात से खिन्न हो जाते हैं तो कुछ लोग थोड़ी-सी प्रशंसा सुनकर अहंकार से भर जाते हैं । प्रतिकूलताएँ इन्सान के मन में आर्त-ध्यान और रौद्र - ध्यान करवाती हैं, वहीं अनुकूलताएँ राग पैदा करती हैं। प्रतिकूलता और अनुकूलता की प्रतिक्रियाएँ राग-द्वेष मूलक हो जाती हैं । कई लोग क्रोधी स्वभाव के होते हैं, तो कई लोग कामासक्त होते हैं। लोगों के मन में मोह, मूर्च्छा, कामासक्ति, भोगासक्ति इतनी अधिक होती है कि उनकी देह तो मंदिर में होती है, मुहँ में बोल प्रभु के होते हैं, हाथ माला भी होती है, लेकिन अन्तरमन में वही भोग की धारा प्रवाहमान रहती है | कामना
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