________________
रोज़ का ही क्रम हो गया। राजा घबराने लगा कि यह मैंने क्या किया, कहाँ आकर फँस गया ? सेवा तो करो ही, डंडे भी खाओ। राज्य में रहता तो डंडा खाना तो दूर कोई अँगुली भी उठा देता तो उसकी अंगुली ही हाथ से अलग कर दी जाती। और यहाँ यह गुरु डंडों की बरसात कर रहा है और मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँ। एक दिन गुरु ने देखा कि जैसे ही वह डंडा मारने को तत्पर हुआ राजा ने पीछे से डंडा पकड़ लिया । गुरु मुस्कुराए । अब तो वे हर काम के समय राजा को डंडा मारने लगे। झाड़ लगाएँ, खाना बनाएँ, पानी लाएँ, जब-तब गुरु डंडा टिका देते। धीरे-धीरे जागरूकता सधने लगी। गुरुजी डंडा मार ही नहीं पाते, उससे पहले वह डंडा पकड़ लेता।
एक दिन राजा सोया हुआ था कि गुरु ने डंडे से प्रहार किया। राजा चौंका कि अब तो हद हो गई। यह गुरु न तो दिन में जीने देता है और न ही रात में सोने देता है । राजा की हालत खराब हो गई, डंडे पड़ते रहे । पर एक रात जब गुरु डंडा मारने के लिए कक्ष में घुसे कि उनकी पदचाप, आने की आहट से ही राजा चौकन्ना हो गया। वह उठकर बैठ गया। गुरु उस दिन डंडा न मार पाए। दूसरे दिन भी वही हुआ। सात दिन बीत गए, पर गुरु डंडा न मार पाए । गुरु कक्ष में
आए कि राजा उठकर बैठ जाए। सातवें दिन गुरु ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा- धन्य है तुम्हें, तुम समाधि के रास्ते को उपलब्ध हो गए, तुमने आत्मज्ञान का मूल तत्त्व अर्जित कर लिया। राजा सोचने लगा और बोला- कौनसा तत्त्व अर्जित कर लिया ? कोई ज्ञान-ध्यान की बात भी न हुई भगवन् और आप कहते हैं मूल तत्त्व अर्जित कर लिया। क्या डंडे खाना ही समाधि का द्वार था ? गुरु ने कहा- हाँ बेटा, सचेतनता को साधना ही समाधि का द्वार था। तुमने पहले अपनी काया को तपाया, काया से मेहनत की, तुम आतापी बने । तुम्हारे भीतर जो ललक पैदा हुई, उससे तुम्हारी स्मृति काया के प्रति कायम हो गई और जब मैंने डंडे मारने शुरू किए तो तुम सचेतन होते चले गए और अंततः मैं डंडा नहीं मार पाता था। तुम्हारी सचेतनता इतनी सध गई कि तुम आतापी, स्मृतिमान और संप्रज्ञाशील हो गए और इन तीन तत्त्वों को साधना ही समाधि का द्वार है। ___ यह बहुत ही प्रीतिकर कहानी है । स्मरण रहे साधना और समाधि के लिए पाँच बातें चाहिए- (1) प्रखर अनुपश्यना, (2) आतापी हो जाना, (3) संप्रज्ञाशील होना (प्रत्यक्ष अनुभूति को जोड़ना), (4) सचेतन स्मृतिमान होना, (5) राग-द्वेष से मुक्त होकर साधना करना । इन पाँचों को साध लेने से 80
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org