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रात से राजकुमार की शैया के निकट ही बैठा है कि अचानक उसे नींद की झपकी लग जाती है और एक सपना आता है कि उसके सात राजमहल हैं, सात रानियाँ हैं और हर रानी के एक-एक राजकुमार हैं। उनके साथ वह सुखपूर्वक रह रहा है, सभी राजपुत्र उसका सम्मान करते हैं । एक दिन राजकुमार खेलकूद कर अपने राजमहलों की ओर लौट रहे थे कि राजा सामने दिख जाते हैं। सभी राजकुमार अपने- अपने घोड़ों से नीचे उतर जाते हैं और राजा के पाँव छूने लगते हैं। राजा अपने बच्चों के प्रति प्रेम से भर जाता है, उसके हृदय में वात्सल्य उमड़ आता है, वह आगे बढ़कर अपने सारे राजकुमारों को गले लगाना चाहता है । जैसे ही वह गले लगाना चाहता है, उतने में ही बीमार राजकुमार की मृत्यु हो जाती है। राजरानी की चीख निकलती है- 'बेटा, चल बसा।' चीख सुनते ही राजा की आँख खुल जाती है। रानी पुनः कहती है, 'हमारा बेटा नहीं रहा । ' राजा हतप्रभ है, वह क्या करे ? उसके सामने दो दृश्य हैं - एक सामने रखा हुआ शव और एक वह स्वप्न जो वह अभी-अभी देख रहा था । राजा गुमसुम हो गया। उससे कुछ कहते-बोलते नहीं बन रहा था । राजमाता ने भी राजा से कहा- तुम कुछ सुन रहे हो या नहीं, तुम्हारा बेटा इस दुनिया को छोड़कर चला गया। राजा ने कहा- हाँ, माँ मैं सुन रहा हूँ ।
तो ऐसे चुपचाप क्यों बैठे हो ? अपने पुत्र के लिए कुछ तो विलाप कर । राजमाता ने कहा- तुझे आँसू क्यों नहीं आ रहे, तेरा पुत्र नहीं रहा, क्या तू विक्षिप्त हो गया है, जो ऐसे गूँगे जैसा बैठा है । यह सुनते ही राजा हँस पड़ा । माँ को लगा कि सचमुच ही राजा पुत्र - बिछोह से पागल हो गया है। तभी राजा ने कहा- माँ, बताओ मैं किसके लिए रोऊँ और किसके लिए हँसूँ। माँ ने पूछाक्या मतलब, क्या कहना चाहते हो ? माँ, मैं उन सात राजकुमारों के लिए रोऊँ या इस राजकुमार के लिए रोऊँ- राजा ने कहा । माता ने पूछा- क्या तुमने कोई सपना देखा था ? राजा ने कहा- 'हाँ माँ, सपना ही देखा था । बस, फ़र्क़ यह था कि एक सपना बन्द आँखों से देखा था और एक खुली हुई आँखों से देख रहा हूँ।
संसार एक सपना ही तो है, खुली हुई आँख का सपना ! यह अनुभूति, यह संप्रज्ञान ही अनुपश्यना है। जिसकी इस सच्चाई से मुलाकात हो जाती है कि यह है अनित्यता, अनात्म और दुःख, तब अपने-आप ही भीतर में अनासक्ति का फूल खिल जाता है ।
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