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'विपश्यना' बुद्ध का शब्द है और 'अनुपश्यना' महावीर का शब्द है। दोनों में कोई फर्क नहीं है। ज्यों-ज्यों हम गहराई में जाएँगे, इन शब्दों के अर्थ समझेंगे । हम जो स्वयं को बाहर से पॉलिश्ड रूप में प्रस्तुत करते हैं, जरा भीतर से स्वयं को दिगम्बर कर डालें। भीतर से अपने-आपको खोलकर खुली डायरी बना लें कि यह 'मैं' हूँ। जो तुम थे, उसे भूल जाओ, क्या होओगे भूल जाओ। जो हो' उस बोध को भीतर जोड़ने का प्रयत्न करो । दुनिया में खरे-खोटे दोनों सिक्के चलते हैं। एक महिला अपने पति पर चिल्ला रही थी कि दुनिया बहुत खोटी हो गई है। वह कह रही थी कि उसने दस रुपए की सब्जी खरीदी और सब्जीवाला अठन्नी खोटी देकर चला गया। पति ने कहा – भागवान, क्यों इतना चिल्ला रही है, दे गया तो दे गया। वह अठन्नी मुझे दे दे मैं तुझे बदलकर दे देता हूँ। पत्नी ने कहा – कहाँ से दे दूं, जब सारी दुनिया ही ऐसी हो गई है तो जो सुबह दूधवाला आया था, उसे मैंने चला दी।
यहाँ सभी खोटा दे जाने पर गालियाँ निकालते हैं और खुद के पास जो खोटापन है वह दूसरों को आगे चलाते हैं। यहाँ सभी एक-दूसरे को चलाने में, बेवकूफ़ बनाने में मशगूल हैं। किसी समय ‘बनाने का अर्थ निर्माण, सृजन हुआ करता था लेकिन अब ‘बनाने' का अर्थ मूर्ख या बेवकूफ़ बनाना है।
कभी मैंने एक कहानी पढ़ी थी – कोई संत सब्जी बेचने का कार्य करते थे। उन्हें कम दिखाई देता था। लोग आते सब्जियाँ खरीदते और कुछ सिक्के खरे और कुछ खोटे सिक्के दे जाते । संत सिक्के देखते, पहचान जाते, पर कुछ बोलते नहीं। खोटे सिक्के अपने पास रख लेते और सब्जियाँ दे देते । इसी तरह उनकी जिंदगी गुज़र गई। उनके पास ढेर सारे खोटे सिक्के इकट्ठे हो गए। एक दिन संत को अहसास हुआ कि जितना उसे जीना था, जी लिया, अब उसे प्रभु के मार्ग पर जाना चाहिए। वह प्रभु की भक्ति में लीन होना चाहता था। अपनी झोपड़ी में पहुँचकर उसने सारे खोटे सिक्के इकट्ठे कर लिए और संध्याकाल में एक दरी पर बिछा दिए। घुटने टेककर वह अपने प्रभु को याद करने लगा, उसकी भक्ति में डूबने लगा। वह अपनी प्रार्थना में यही गुनगुना रहा था- प्रभु मेरी उम्र अब पूरी हो चुकी है, मेरे पास जीने के लिए समय नहीं है, अब तो तेरे पास आने का ही वक़्त बचा है। मैं जानता हूँ कि जीवन में मैंने बहत धर्म नहीं किया है कि मैं तेरे पास आने का हकदार बनूँ। मुझे मालूम है कि मैं एक खोटा सिक्का हूँ, पर भगवन् ! मैं तुम्हारे पास आ रहा हूँ। इस आशा के साथ कि तुम
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