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________________ कितना बोध और कितनी जागरूकता कायम की ? यूँ तो हम घंटों तक प्रभुभक्ति कर लेते हैं, पर क्या स्वयं को जानने और समझने के लिए प्रतिदिन दस मिनिट का समय भी निकाल पाए हैं ? जो स्वयं को नहीं समझ पाया, वह औरों को क्या समझ पाएगा ? जिसने स्वयं को नहीं जाना, स्वयं को वश में नहीं किया, वह दूसरों को कैसे वश में करेगा ? एक सज्जन ने मुझसे पूछा कि उनका मन उनके वश में नहीं रहता, वह क्या करे ?' मैंने कहा- 'अभी मैं व्यस्त हूँ, आप एक घंटा रुकें, तब मैं आपको जवाब दे सकूँगा।' थोड़ी देर बाद अचानक मैंने उनसे प्रश्न किया, 'आपकी पत्नी तो आपके वश में होगी ?' वे बोले, 'अरे कहाँ, अगर वही वश में होती तो परेशानी का कोई सबब न होता।' मैंने कहा, 'कोई बात नहीं, बेटा तो आपके वश में होगा ?' वे बोले, 'कहाँ साहब, वह तो अपनी मनमानी करता है।' मैंने फिर पूछा, 'आपका परिवार तो ज़रूर ही आपके वश में होगा ?' उन्होंने बताया, 'कोई भी उनके वश में नहीं है।' मैंने समझाया, 'आप दूसरों को वश में करना चाहते हैं और मुझसे पूछते हो - मन मेरा वश में नहीं है क्या करूँ ? जब आप स्वयं को ही वश में न कर पाए तो दूसरों को कैसे वश में करोगे।' सभी को अपने मन से दिक्कत है। सभी कहते मिल जाएँगे कि मन बिगडैल है, विकृत हो जाता है, क्रोध कर लेता है, कभी भी काम-भोग-वासना की तरंगें पैदा हो जाती हैं। जो इन्सान अपने भीतर से पागल है, विक्षिप्त है, घायल है, वह इस मन को सँवारने के लिए, सुधारने के लिए वक्त नहीं देता है। कहते ज़रूर हैं कि मन को वश में करना चाहते हैं, पर इसके लिए शांति की साधना नहीं करते, अन्तरमन की विपश्यना और अन्तरमन से साक्षात्कार नहीं करते। अन्तरमन से साक्षात्कार करना सबसे बड़ा तप है। जब कोई तप के मार्ग पर चल पड़ता है, तब उसकी भक्ति भी तपने लगती है। साधना भी तपने लग जाती है, ज्ञान भी तपने लगता है। शेष तो पुस्तकों को पढ़कर ज्ञानी नहीं हो सकते । अनुभव से ही ज्ञान प्रकट होता है। किताबें पढ़कर बुद्धिमान हो सकते हैं, सूचनाएँ एकत्रित कर सकते हैं, बुद्धि के विकास के रास्ते खुल सकते हैं, लेकिन सम्यक् ज्ञान के, सम्यक् प्रज्ञा के मालिक नहीं हो सकते । प्रज्ञा की परिपक्वता के लिए जिंदगी में लगने वाली ठोकरों से 16 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003871
Book TitleVipashyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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