SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रभु की तरफ लगाकर, साधारण मन और चित्त से ऊपर उठाकर असाधारण चेतना का स्वामी बनता है। दस-पन्द्रह दिन का अभ्यास भी हमें यह परिणाम दे सकता है। ___ बाकी, हमारा चित्त तो उस बंदर की तरह है जिसने शराब भी पी ली है। पहले ही चित्त बंदर है जिसे सुध-बुध और अक्ल नहीं है. ऊपर से किसी ने घमंड की, किसी ने मोह की, किसी ने भोग-वासना की. किसी ने ज़मीनज़ायदाद की शराब पी ली है और उस पर बिच्छू ने भी काट लिया है कि पति पीछे पड़ गए, पत्नी पीछे पड़ गई, बच्चे भी पीछे पड़ गए। बताइए उस बंदर की क्या हालत होगी जो अपने स्वभाव से, प्रकृति से ही बंदर है, उछल-कूद कर रहा है, ऊपर से शराब पी ली है, बिच्छू ने काट लिया है ? ऐसे चित्त रूपी बंदर को कैसे टिकाया जाए ! ऐसे बंदर को भी मदारी येन-केन-प्रकारेण ऐसे साध लेता है कि बंदर लकड़ी की छड़ी और डमरू के इशारे पर नाचने को मज़बूर हो जाता है, वश में हो जाता है। ऐसे ही इस बंदर कहलाने वाले चित्त में जिसमें ढेर सारे विकार, क्रोध, कषाय, अनन्त-अनन्त काम-वासना के तंतु भरे पड़े हैं ऐसे चित्त, ऐसे मन को जहाँ जन्म-जन्मांतर के संस्कार भरे पड़े हैं, हम शांत कर सकते हैं, शिक्षित कर सकते हैं, दिव्य भाव से भर सकते हैं। हालांकि आज हमें लगता है, हम शांत हैं, बहुत शांत हैं, निर्मल हैं लेकिन कब कहाँ ज्वार-भाटा आ जाता है, ज्वालामुखी भड़क उठे कोई पता नहीं चलता। इस मन की स्थिति ऐसी ही है। इसमें कब, कहाँ, कौन से परमाणु मचलने लगेंगे पता नहीं चलता। हम ध्यान में बैठें। अप्रमत्तभाव से बैठें, ध्यान की शांति, एकलयता, एकाग्रता लिए हुए बैठे । श्वास पर ध्यान करते रहें, गहरे श्वास लेते रहें, धीरेधीरे श्वास, शरीर और सारी गतिविधियों को शांत करते जाएँ। भीतर-बाहर से पूर्ण मौन हो जाएँ। अन्तरमन में अधिकतम शांति को साकार करते जाएँ। भीतर में एक ही सम्यक् स्मृति रखें, एक ही धारणा रखें- मैं शांत हो रहा हूँ, मौन हो रहा हूँ, स्वानुभूति में, आत्मानुभूति में स्थिर हो रहा हूँ। हम शांति-प्रशांति को भीतर में गहरा करते जाएँ। शांति की गहराई से ही संबोधि का उदय होगा। पहले श्वासों में शांति, फिर दिमाग में, फिर धीरे-धीरे गले में शांति विस्तार करते रहें, फिर वक्षस्थल में, धीरे-धीरे उदर, नाभि-प्रदेश की ओर शांति को गहरा करते जाएँ। शांति में इस तरह डूबें मानो शांति ही भगवान हो । शांति को मित्र बनाएँ और शांत-शांत-शांत होते रहें। भीतर में केवल शांति का चैनल 150 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003871
Book TitleVipashyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy