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के लिए स्वयं को तत्पर करना ज्ञान की सच्ची कसौटी है। यह एक श्रेष्ठ तप है। हमारे लिए स्वयं को तपस्वी बनाना जरूरी है। जो साधना-मार्ग पर चल रहा है, वह तपस्वी है। हम अपने मन को, अपनी इन्द्रियों एवं अपनी काया को संयमित करने के लिए प्रयत्नशील हों। मेरा तो सुझाव है कि जैसे पहाड़ और पर्वत सामान्य ज़मीन से ऊपर होते हैं, जैसे कमल के फूल सरोवर के सामान्य जल से ऊपर हुआ करते हैं, वैसे ही साधकों को कमल के फूल की तरह अपनी अन्तरात्मा.में जीना चाहिए अनासक्त योगी की तरह। अनासक्त योगी का धरती पर जीना धरती का सौभाग्य है, लेकिन भोगी और रोगी का जीना धरती के लिए भार और बोझ बन जाता है। बुद्धत्व के बोध और महावीर के महामौन के मार्ग पर चलने के लिए अन्तरमन का तपस्वी होना पहली अनिवार्यता है।
यहाँ जो बुद्ध के मार्ग से चलते हैं, वे बोध पाते हैं। जो महावीर के मार्ग पर चलते हैं, वे मोक्ष पाते हैं, पर जो ययाति के रास्ते चलते हैं, वे भोग के चक्रव्यूह में उलझ जाते हैं, वे बंधन पाते हैं। वे लोकचक्र में अटक जाते हैं। बुद्ध और महावीर इनका मार्ग तो होश और बोधपूर्वक जीने का मार्ग है। यह मुक्ति और महापरिनिर्वाण का मार्ग है । दुःख-दौर्मनस्य और वैर-वैमनस्य से छुटकारा पाने का मार्ग है। इसके लिए हमें मुक्ति का लक्ष्य निर्धारित करना होगा, स्मृतिमान होना होगा, आतापी और तपस्वी होना होगा।
__ अतीत में भी जिन्होंने स्वयं को तपस्वी बनाया वे उपलब्ध हो सके। महावीर महातपस्वी बने । स्थूल दृष्टि से देखने पर तो हम यही जान सकते हैं कि वे कितने दिन भूखे रहे और कितने दिन खाना खाया, लेकिन ऐसा करने पर हम केवल महावीर की काया को उपलब्ध हो सकते हैं। काया के अन्दर छिपे कायनात को छू भी न पाएँगे। महावीर के अनुयायी गर्व के साथ उल्लेख करते हैं कि महावीर ने अपने साढ़े बारह वर्ष के साधना काल में केवल साढ़े तीन सौ दिन खाना खाया, शेष दिनों में वे भूखे रहे । यह तो हठयोगियों की साधना हो गई
और उनके अनुयायी भी अगर इसी बात को प्राथमिकता देते हैं तो वे भी महावीर के कलेवर पर ही ध्यान दे रहे हैं। इस तप के अन्दर छिपे एक सच्चे तपस्वी को वे भूल रहे हैं। आप यह न समझें कि भोजन से आध्यात्मिक तप का कोई विशेष सम्बन्ध है। भोजन करते हुए भी परम आध्यात्मिकता को उपलब्ध हुआ जा सकता है। महावीर साधारण गृहस्थ की भाँति नहीं हैं, वे विशिष्ट ज्ञानी हैं, आत्म-ज्ञानी हैं। वे केवल काया को तपाने में विश्वास नहीं रखते। वे अपने मन
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