________________
आज जब हम बुद्ध के ज्ञान-प्रकाश में बैठकर आत्म-चिन्तन और मनन करने के लिए स्वयं को तत्पर कर रहे हैं तो निश्चय ही हमारे भीतर ऐसा कोई कमल, ऐसी कोई प्रकाश-रेखा वैसे ही साकार होने लग सकती है, जैसे फूलों के स्मरण से फूल, दुश्मन की याद से दुश्मन और मित्र की स्मृति से मित्र की छवि साकार होती है। भले ही देवताओं के स्मरण से वे हमारे समक्ष प्रगट न होते हों, लेकिन स्मरण से उनकी दैवीय छवि हमारे भीतर अवश्य साकार होने लगती है।
__ हम आतापी, स्मृतिमान और सचेतन बनें। आतापी यानी तपस्वी। आत्मा की स्मृति में, दिव्यता की स्मृति में निमग्न रहने वाला आतापी है, तपस्वी है। यहाँ तप का सम्बन्ध भूखे रहने से नहीं है। तप का सम्बन्ध वीणा के तारों की तरह तन-मन-आत्मा को साधने से है।
हम सभी तपस्वी बनें। ऐसे तपस्वी जो अपने-आप के पास हों। ऐसे तपस्वी जो साधना में श्रमशील हों, जिनकी इन्द्रियाँ उनके अपने वश में आ चुकी हों। हमारे भीतर संकल्प और विकल्पों के रूप में, विकार और संवेदनाओं के रूप में, संस्कार और प्रकृति के रूप में जो कर्म के बीज बोए जा चुके हैं और नित्य-प्रति बोते रहते हैं, क्रियाओं के रूप में बोए जाने वाले बीज तो हैं ही, पर मन-ही-मन विचार और विकल्प, हिंसा-प्रतिहिंसा, वैर-विरोध, राग-द्वेष के जो कर्म बीज बोते हैं, उन सबको हम धुनने में, उखाड़ने में, काटने में तत्पर हों।
हममें से हर व्यक्ति स्वयं को तपस्वी और घर को तपोवन बना ले । हमारे सामने जीवन का लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए कि हम जीवन में भवचक्र से निवृत्ति चाहते हैं या भवचक्र में प्रवृत्ति चाहते हैं। जो संसार में प्रवृत्ति चाहते हैं, उनके लिए सामान्य स्तर की बातें हुआ करती हैं, पर जो संसार से ऊपर उठकर बोध
और ज्ञानपूर्वक प्रकाश-पथ के अनुयायी होना चाहते हैं, अमृत-पुत्र की तरह जीना और स्वयं को अमृत बनाना चाहते हैं, उन्हें शांत-चित्त और आत्मभाव से खुद को तपाना चाहिए। बिना स्वयं को तपाये, बिना इन्द्रियों को वश में किए कोई भी व्यक्ति आध्यात्मिक पथ पर प्रगति नहीं कर सकता।
स्वयं का जितेन्द्रिय होना बुद्धत्व की अनिवार्य शर्त है। जो लोग धर्मअध्यात्म पर कोरी चर्चा करते रहते हैं, मैं उन्हें कह देना चाहता हूँ कि धर्म और अध्यात्म की चर्चा करना, धार्मिक पुस्तकों का पठन-पाठन करना, प्रवचन देना या प्रवचन सुनना बिल्कुल अलग चीजें हैं, पर उस धर्म और अध्यात्म को जीने | 12]
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org