________________
घर के लोग महात्माजी के कदमों में लोटने लगे। महात्माजी ने पानी के कटोरे में कुछ मन्त्र पढ़ा और युवक के ऊपर तीन बार घुमाकर कहने लगे, इस पानी को कोई पी जाए। पीने वाला तो मर जाएगा, पर यह युवक ज़िन्दा हो जाएगा।
यह सुनते ही सब हक्के-बक्के रह गए। अब मरे कौन ? सब एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। सबने बहाने बनाने शुरू कर दिए। माता-पिता ने कहा'हमारे कोई एक बच्चा तो है नहीं, जो इसके लिए मरें।' पत्नी ने कहा- 'मरने वाले के पीछे कोई मरा तो नहीं जाता।' आख़िर महात्माजी ने कहा – 'तो फिर मैं पी लूँ यह पानी ?' __सब घरवाले एक स्वर से बोल उठे- 'आप धन्य हैं प्रभु ! आपका तो जीवन ही परोपकार के लिए है। आप कृपा करें। आप तो मुक्त-पुरुष हैं। आपके लिए जीवन-मरण सब समान हैं।'
युवक को अब कुछ देखना-सुनना नहीं था। उसने प्राणायाम पूरा किया और बैठते हए बोला- 'भगवन् ! अब आपको यह पानी पीने की ज़रूरत नहीं है। आपने मुझे इस पानी के ज़रिये जीवन का सच्चा बोध प्रदान कर दिया, संबुद्ध जीवन का बोध।'
युवक ने जीवन जीना सीख लिया। क्या हम अपने जीवन के सत्य से रूबरू होना चाहेंगे ?
अतीत में बुद्ध और महावीर जैसे महापुरुषों ने कभी किसी चैत्य-विहार में, कहीं किसी अशोक वृक्ष की छाया में, चम्पा की चहकती-महकती कलियों के बीच बैठकर भिक्षुओं एवं मुनियों के साथ आत्म-संवाद किए होंगे। उन्होंने साधकों एवं मुमुक्षुओं को अपने आध्यात्मिक ज्ञान से प्रकाशित किया होगा। आज वे महापुरुष हमारे बीच सशरीर नहीं हैं, लेकिन उन्हें प्रेम और दिव्यभाव से याद करने पर वे हमारे हृदय में साकार होने लगते हैं। यदि हम अपने मनमन्दिर में महावीर को याद करेंगे तो उनकी सूरत और मूरत उभरकर आने लगेगी, वहीं यदि बुद्ध को याद करेंगे तो बुद्धत्व का बोध, बुद्धत्व का कमल खिलने लगेगा। ध्यान में उतरकर आकाश को याद करने से, उस पर ध्यान करने से अन्तरमन में आकाश, आकाश के बादल, उसकी नीलिमा, वहाँ के सूरज, चाँद-सितारे, धीरे-धीरे सब हमारे अन्तरमन में साकार होने लगते हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org