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पथ है। अतिवाद का त्याग करना ही मध्यम मार्ग है । मैं स्वयं मध्यम मार्ग को जीता हूँ ।
जीवन वीणा के तारों की तरह है। इन्हें न तो ज़्यादा कसो, न ज़्यादा ढीला छोड़ो। इन्हें सन्तुलन के सिद्धान्त से साधो । जीवन को वीणा के तारों की तरह इस तरह साधा जाए कि जीवन का हर लम्हा हमें संगीत का सुकून दे, शांति का तराना छेड़े, आनंद के गीत सरसाए ।
हम हिंसा का त्याग करें, झूठ और चोरी के पाप से बचें, व्यसन और व्यभिचार से स्वयं को दूषित न होने दें। हम शांति के अनुयायी हों, सत्य, अहिंसा और भाईचारे को प्राथमिकता दें, पवित्रता और मुस्कान हमारी पहचान हो। हम स्वयं को लाफिंग बुद्धा बनाएँ, हँसता - मुस्कुराता बुद्ध। होश और बोधपूर्वक जीने वाला संबुद्ध पुरुष ।
विपश्यना एक दिव्य पथ है- स्वयं के सत्य से साक्षात्कार करने का पथ । हमारे लिए ज़रूरी है कि हम अपनी मूर्च्छाओं को समझें, मूर्च्छाओं के जाल से बाहर निकलें, जीवन की हक़ीक़तों से परिचित हों और फिर अपना सहजसचेतन जीवन जिएँ। मैं संबोधि में विश्वास रखता हूँ । संबोधि यानी होश और बोधपूर्वक जीवन जीने की दृष्टि ।
एक महात्मा ने एक सत्संगी युवक को समझाया - 'दुनिया में केवल भगवान ही अपना है, बाकी कोई किसी का नहीं है। माता-पिता की सेवा और पत्नी-बच्चों का पालन कर्त्तव्य समझकर करें, न कि उनमें मूर्च्छित या आसक्त होकर ।'
युवक ने कहा- 'मगर भगवन् ! मेरे माता-पिता मुझसे इतना प्यार करते हैं कि एक दिन घर न जाऊँ, तो उनकी भूख-प्यास मर जाती है, नींद उड़ जाती है और मेरी बीवी तो मेरे बग़ैर ज़िन्दा ही नहीं रह सकती । '
महात्मा ने युवक को परीक्षा करने का तरीका समझाया । तदनुसार युवक घर जाकर पलंग पर चुपचाप लेट गया । प्राणायाम के द्वारा साँसों को मस्तक में चढ़ाकर वह निश्चेष्ट हो गया। घरवालों ने उसे मरा समझकर रोना-धोना शुरू कर दिया। आस-पड़ोस के लोग और परिजन इकट्ठे हो गए ।
उसी समय महात्माजी आ पहुँचे। उन्होंने कहा- 'मैं इसे ज़िन्दा कर सकता हूँ। एक कटोरा पानी लाओ ।'
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