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9 विपश्यना से पाएँ विलक्षण फल
भगवान बुद्ध राजगृही के राजमार्ग से जा रहे थे। राजगृही नगर पर्वतमालाओं के मध्य बसा हुआ था । भगवान बुद्ध के परिवार का एक सदस्य था देवदत्त, जो उनका चचेरा भाई था । वह उनसे अत्यधिक शत्रुता रखता था । उसने श्री भगवान का शिष्यत्व भी ग्रहण किया था, लेकिन उसकी चाहत थी कि जिस तरह गौतम बुद्ध का विस्तृत प्रभाव है उसी तरह उसका प्रभाव भी फैले और उन्हीं की तरह उसके भी हजारों शिष्य हों । इसी महत्वाकांक्षा के कारण उसने भगवान के शिष्यों के मध्य फूट डालने की भी कोशिश की, लेकिन सफल न हो सका। कहते हैं तब वह राजगृही की पर्वतमालाओं पर चढ़ गया और इन्तज़ार करने लगा कि कब बुद्ध उन पर्वतमालाओं के नीचे से गुजरें । जब भगवान उन पर्वतमालाओं के नीचे से गुजर रहे थे कि उसने एक बड़ी शिला उठाई और भगवान के ऊपर फेंकी। कहा जाता है न कि 'जाको राखे साइयाँ, मार सकै न कोय' - पत्थर, भगवान के दस इंच आगे गिरा । पत्थर बहुत बड़ा था सो भले ही भगवान उससे बच गए हों पर एक टुकड़ा उसमें से टूटा और उछलकर बुद्ध के
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